ऋषि दयानन्द को शत् शत् नमन
*ऋषि दयानन्द को शत शत प्रणाम*
आ:!!! कार्तिकी अमावस्या सम्वत् १९४० को वह सायं छ: बजे का समय भी कैसा निर्मम था कि जिसने विश्व की महान् विभूति, आर्यजनों के प्राणभूत देव *महर्षि दयानन्द सरस्वती* को सर्वदा के लिये छीन लिया। देखते ही देखते आर्यजनों का अवलम्ब अविलम्ब निरवलम्ब हो गया। सहृदयों के अन्तर्हृदय का हर्ष उस दुष्ट वर्ष की बलि चढ़ गया। आर्यविचारों का प्रचार चिन्ता की चिता पर लेट गया। वेदभाष्य नैराश्य की आसन्दिका पर आसीन हो गया। सत्यासत्य के अन्वेषण का भूषण न जाने किधर खो गया। विधाता का क्रूर कटाक्ष अपनी कक्षा से निकलकर आर्यत्व की रक्षा के पक्ष पर ही टूट पड़ा। ब्रह्मचर्य व्रत का सर्वोच्च आदर्श केवल स्मृति के श्यामपट्ट पर ही अंकित रहने के लिये एकाकी पड़ गया। आर्ष ग्रन्थों का उद्धार हार खाने के लिये खुला छोड़ दिया गया। ॠषि मुनियों की परंपराओं का खुलता हुआ द्वार दुर्दैव के एक वार से ही ध्वस्त हो गया।
विधवाओं का करुणक्रन्दन जिसका वन्दन करता था, अनाथों का चीत्कार जिसके सौहार्द का अभिनन्दन करता था, गोरक्षा का आन्दोलन जिसकी अन्त:अनुकम्पा का पुनीत पर्व था और गुरुकुलीय शिक्षा का अक्षीण कोष ही जिसका सर्वस्व था, आ:! वह भी विधाता को सहन न हुआ।। पाखण्ड खण्डिनी पताका का पता जिस प्रकार कानोकान फैल रहा था, उसका अन्तिम फल 🍎 विफल करने के लिये ही सम्भवत: पक्षपाती काल ने फांसी का फन्दा फेंका होगा। अद्वैतवाद का विवाद त्रैतवाद से भिड़कर, अवतारवाद का मण्डन अवतारवाद के खण्डन से खण्डश: होकर, निरीश्वरवाद का प्रसार सेश्वरवाद से निरस्त होकर जब अन्तिम घड़ियां गिन रहा था तभी दैव ने अपना अट्टहास सुनाने की ठान ली।
आ:!! सत्य सिद्धान्तों के आधार! यह धरा अब अधरा हुई जा रही है ,काँच पिलाने वाले को भी आँच न आने के लिये पाथेय रूप धन देने वाले!! प्रभो तेरी इच्छा पूर्ण हो यह कहकर मृत्यु को भी आशीर्वाद देने वाले!! अद्भुत स्वरूप!! नययनाभिराम ऋषि तुम्हें शत- शत प्रणाम है।।
*आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी* आर्योपदेशक ९४१२११७९६५