स्वामी श्रद्धानन्द के जीवन का एक विस्तृत पृष्ठ
विस्तृत पृष्ठ 1919 का वर्ष भारतीय राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अंग्रेजों द्वारा 'रौलेट एक्ट' लागू किया गया, जिसे काला कानून भी कहा जाता है। उनका मानना था कि प्रथम विश्व यद्ध के समय कछ भारतीयों सरकार के विरुद्ध गतिविधियों में भाग लिया थायह कानून ऐसी गतिविधियों में भाग लेने वालों पर अंकुश लगाने के लिए बनाया गया था। इसके तहत किसी को गिरफ्तार कर जेल भेजने की खुली छूट, दो वर्ष तक बिना सुनवाई के भी जेल में रखने, प्रेस पर भी कठोरता से नियंत्रण का प्रावद्दान था। प्रेस आरोपी को जेल में रखे जाने की कोई समय सीमा नहीं बिना वारंट गिरफ्तारी व आरोपी के कैमरा ट्रायल का विधान था। जेल रिहाई पर आरोपी द्वारा जमानत राशि जमा कराने और यह शपथ पत्र दाखिल करने की बाध्यता थी किसी भी राजनीतिक, शैक्षिक अथवा धार्मिक गतिविधि में भाग नहीं लेगा । संक्षेप में कहें तो यह कानून दलील, न वकील, न अपील का काला कानून' था। महात्मा गाँधी उस समय राष्ट्रीय फलक पर उभरता हुआ व्यक्तित्त्व थे। उन्होंने इस कानून के विरोध आंदोलन आरम्भ कर दिया। उनके आंदोलन से डॉ. सत्यपाल, डॉ. सैफुद्दीन किचलू, डॉ. अंसारी और हमारे चरित्र नायक स्वमी श्रद्धानन्द जैसे अनेक प्रबुद्ध चिंतक जुड़ गए। पंजाब क्षेत्र में इस कानून के विरोध विशेष आक्रोश था। वहाँ पर दौरा कर रहे डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर धर्मशाला जाकर नजरबंद कर दिया गया। सेना तैनात कर दी गई और कठोर धाराएं विशेषाज्ञा के रूप में लागू कर गईं। इसी दौरान अप्रैल 13, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में बैसाखी के अवसर पर इकट्ठा हुए निरपराध लोगों पर जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलीबारी कर रक्तरंजित कांड को अंजाम दिया था। इस एक्ट के विरुद्ध हुए आन्दोलन में आर्यसमाज के नेता और गुरुकुलीय शिक्षा के पुनरुद्धारक श्रद्धानन्द जी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धुमकेतु की तरह चमके थे। स्वामीजी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना का हम यहाँ पर विस्तृत वर्णन देना चाहेंगे। श्रद्धानन्द का 4 मार्च को अकस्मात् ही इस आंदोलन से जुड़ना हुआ। उनका महात्मा गाँधी से रौलेट को लेकर संवाद हुआ। _7 मार्च को स्वामीजी ने कांग्रेस के मंच से प्रथम बार सार्वजनिक भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण कहा कि अगर रौलेट कानून लागू हो गया तो जनता ब्क् के रहमो करम पर आश्रित हो जायेगी। तब एक कल्पना भर रह जायेगा10 से 21 मार्च एक स्वामीजी बम्बई, सूरत, भरूच, अहमदाबाद और रौलेट कानून के विरोध में जनसभाओं को सम्बोधित करते मिलते हैं। 22 मार्च को स्वामीजी दिल्ली हैं तो देखते है कि आंदोलन ठंडा पड़ रहा है। 24 मार्च को कुछ उत्तेजना के साथ स्वामीजी का भाषण हुआ। स्वामी जी ने एक काल्पनिक चित्रण हुए अपने भाषण में कहा- सोचिये, भारत के प्रधानमंत्री को इस काले कानून के अंतर्गत निरपराध होते केवल शक की बिनाह पर गिरफ्तार कर लिया जाये और न उन्हें वकील की सहायता मिले, न अपील का अधिकार मिले! क्या आप ऐसा कानून चाहेंगे? 29 मार्च को उन्होंने अपने भाषण में हड़ताल का समर्थन करते हुए कहा- अगर हड़ताल में ट्राम न लें तो उनका सार्वजनिक बहिष्कार कर दिया जाये । अगर सिनेमा आदि खुले तो कोई उसे देखने न । अगर सरकारी सिपाही सत्याग्रह को रोकने का प्रयास करें तो कोई उनकी आज्ञा का पालन न करे अपने जीवन को कठोरता से जीना आरम्भ कर दें-जैसा जेल के कैदियों का होता है क्योंकि कभी भी जाना पड़ सकता है30 मार्च 1919 स्वामी श्रद्धानन्द के जीवन का अविस्मरणीय दिन था। स्वामीजी का कद इस दिन 27 मार्च को अपने भाषण में स्वामीजी ने कहा कि अगर रौलेट कानून लागू हो गया तो कोई भी , सामाजिक और राजनीतिक संस्था कार्य नहीं कर पायेगी।