आश्रम' व्यवस्था नहीं, लोक-व्यवस्था
आश्रम' व्यवस्था नहीं, लोक-व्यवस्था
सचमुच यह आश्चर्य है कि चारों संहिताओं में आश्रम शब्द नहीं मिलता! कैसे कहा जा सकता है कि धर्म और सत्य का मूल वेद हैं ? यहाँ थोड़ा सावधान होकर विद्वत्-समाज को सोचना होगा और वेदों की अपनी शैली को पकड़ना होगा। वेदों की शैली लोकों पर आधारित है। वेद प्रत्येक रचना, निर्माण की व्यवस्था को लोकों में बँटा हुआ देखना चाहते हैं, अत: हर तत्त्व को लोकों में प्रतिपादित करना, लोकों में बँटा हुआ देखना सही वैदिक दर्शन है। जिसको यह लोचनआलोचन प्राप्त है, वह सच्चा दार्शनिक है। इन सबका साक्षात् करके ही भगवान् पाणिनि ने लोक दर्शने धातु का निर्माण किया। जो स्पष्ट आँखों के सामने हैं और लोचन का विषय हैं वे लोक कहलाते हैं।