अग्नि होत्र (देवयज्ञ) परिचय
अग्नि होत्र (देवयज्ञ) परिचय
अग्निहोत्र पद का अर्थ-अग्नि वा परमेश्वर के लिये जल और पवन की शुद्धि वा ईश्वर की आज्ञा का पालन करने के अर्थ होत्र जो हवन अर्थात् दान करते हैं, इसे अग्निहोत्र कहते हैं।
अग्निहोत्र करने का समय- जैसे सायं प्रातः सन्धि-वेलाओं में सन्ध्योपासना करें, वैसे ही दोनों समय अर्थात् सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त के पूर्व, दोनों स्त्री-पुरुष अग्नि होत्र भी नित्य किया करें। यदि एक समय ही करना ही तो दोनों काल के सब मन्त्रों से आहुति दिया करें।'
अग्निहोत्र स्त्री पुरुष-मिलकर करें-
१. इसी प्रकार दोनों स्त्री-पुरुष अग्निहोत्र भी (सन्ध्योपासना के साथ) दोनों समय में नित्य किया करें।
२. किसी विशेष कारण से स्त्री वा पुरुष अग्निहोत्र के समय दोनों साथ उपस्थित न हो सके तो एक ही स्त्री वा पुरुष दोनों की ओर का कृत्य कर लेवें। अर्थात् एक २ मन्त्र को दो २ बार पढ़ के दो-दो आहुति करें । (ऋषि दयानन्द)