बेटी की विदाई : पिता-पुत्री सम्वाद ( गीत )
बेटी की विदाई : पिता-पुत्री सम्वाद ( गीत )
पिताजी मुझको जुदा न करना रहूँगी कैसे वतन से जाकर।
वतन बनेगा वहीं तुम्हारा, बड़ों के चरणों में सिर झुकाकर।
नया वो घर है नयी वो धरती, नए हैं परिजन सभी विजाने।
विजानी पुत्री रहोगी कैसे जो नेह सबसे रहो बढ़ाकर॥१
वहाँ न माता-पिता हैं मेरे, न भाई बन्धु कुटुम्बी मेरे,
है सास माता वहाँ तुम्हारी, ससुर को रखना पिता बनाकर॥२
किया है. अन्याय यह तुमने कैसा छुड़ाई माता की गोद मुझसे
सफल हुए हैं हम आज बेटी, सजन के चरणों में सिर झुकाकर॥३
है रन कैस पिताजी काली, मुझे न गोदी से दूर करना,
नहीं है सामर्थ्य अब रोकने की वचन सजन को सुनाऊँ जाकर॥४
है नीर बहता हुआ नयन से गले की आवाज रुक रही है,
'उमा' तरसती रहीं वे आँखें कहार डोली चले उठाकर॥५