भोजन-विधि
भोजन-विधि
भोजन से पूर्व निम्न मन्त्र से प्रार्थना की जाती हैइस प्रार्थना में अन्नपति (परमात्मा और अन्न को भण्डार में सुरक्षित रखने वाला मनुष्य) का उल्लेख करके उपलक्षण से अन्न उत्पादक, अन्न संरक्षक, अन्न वितरक और अन्न से खाद्य पदार्थ बनाने वाले तक सब के प्रति आभार व्यक्त किया गया है।
भोजन का मन्त्र
ओम् अन्नपतेऽन्नस्य नो देह्यनमीवस्य॑ शुष्मिणः।
प्र प्रदातारं तारिष ऊर्जा नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे॥
-यजुः०
भावार्थ-हे अन्न के स्वामी रक्षक प्रभो! हमें रोग रहित, बलकारक अन्न प्रदान कीजिए। इस जगत् में भी अन्न के प्रदाताओं को दुःखसागर से तारें और हमें दो पैरवाले और चार पैरवाले हमारे गौ आदि पशुओं को अन्न से ऊर्जा (बल और पराक्रम) प्रदान करें।
नित्यं मिताहारविहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्तः।
दाता समः सत्यपरः क्षमावान् आप्तोपसेवी च भवत्यरोगः॥
नित्य नियम से परिमित (आहार) भोजन, विहार प्रात:भ्रमण का सेवन करने वाले, विचार कर काम करने वाले, विषयों में असक्त, दानशील, सभी पर समभाव रखने वाले, निर्बल एवं छोटों पर दयालु,आतों के सेवक रोगी नहीं होते।