चौथा आक्षेप
यह विकासवाद प्रत्यक्ष के विरुद्ध है इसलिए अवैज्ञानिक है। संसार में एक सार्वत्रिक नियम देखा जाता है कि जो चीज उत्पन्न होती है, नष्ट हो जाती है। जो चीज बढ़ती है, अन्त में घटने लगती है। सूर्य की गरमी बढ़कर अब घट रही है। मनुष्य उत्पन्न होकर युवा होता है, फिर बूढ़ा होने लगता है और अन्त में मर जाता है। वृक्षों की भी यही अवस्था होती है। यह कहीं भी नहीं देखा जाता कि कोई चीज बढ़ती ही चली जाय और घटे नहीं। विकास के साथ ह्रास अनिवार्य है। परन्तु डार्विन का विकासवाद एक पहिये की गाड़ी है, ह्रासशून्य विकास है, इसलिए अस्वीकार्य है।