चूडाकर्म/मुण्डन संस्कार


चूडाकर्म/मुण्डन संस्कार


        आर्यों में चूडाकर्म अथवा मुण्डन संस्कार तथा मुसलमानों में हकीका संस्कार समान रूप से बडी धूमधाम से किया जाता है। वास्तव में यह संस्कार है भी धूमधाम से मनाने वाला क्योंकि यह संस्कार केवल सिर की खाज , खुजली आदि रोगों से रक्षा करने वाला ही नहीं है अपितु मानव की विचारणीय शक्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग मस्ति ष्क इसी सिर में ही निवास करता है। इस सिर से ही हमारे समाज के साथ सम्बन्ध स्थापित होते हैं। मनुष्य को मनुष्य व मनन शील बनाने वाला, इसे समाज से जोडने वाला, उसकी रक्षा करने वाला तथा उसे स्वस्थ रखने वाले अंग का नाम सिर है। इसी की रक्षा का बोध कराने के लिए वैदिक संस्कृति में मुण्डन संस्कार तथा मुसलमानों की सभ्यता में हकीका संस्कार की व्यवस्था की गई है।


      इस संस्कार का दांतों के साथ विशेष सम्बन्ध होता है। जब बालक के दांत निकलने लगते हैं तो उसके सिर में दर्द रहने लगता है, सिर गर्म रहता हैबालक को दांत निकलने से इतना कष्ट हो रहा होता है कि बालक इस से दुःखी होकर कई बार तो अपने सिर को तल अथवा भीत (फर्श अथवा दीवार) से पटकने लगता हैइस में उसे आराम मिले या न मिले किन्तु थोडा सा सुख अवश्य अनुभव होता है। दांत निकालते समय बालक को पतले दस्त भी आने लगते हैं। उस पर उसके स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है तथा वह दुबेल होने लगता अतः इस कारण बालों को कटवा कर उसे थोडा सा आराम देने व्यवस्था की जाती है |


      दांत निकालने का क्रम प्रायः छटे महीने से आरम्भ होता है तथा यह कम लगभग अढाई व तीन वर्ष तक चलता रहता है। इस समय तक पहुंचते पहुंचते इसके बीस दांत निकल आते हैं। इन दांतों को दूध के दांत कहते हैंकुछ समय में ही यह दांत टूट जाते है तथा इसके पश्चात स्थाई दांत आते हैं। इन की संख्या बत्तीस होती है दूध के दांत प्रथमा वर्ष में निकलना आरम्भ होते हैं। इस समय बालक अत्यधिक व्यथिता होता है। अतः उसकी व्याकुलता को कुछ कम करने के लिए प्रथम वर्ष में ही उसके सिर के बाल कटवा दिए जाते हैं। बालक के दांत निकलने का क्रम तीन वर्ष में पूरा होता है। इसलिए वैदिक संस्कृति ने तीसरे वर्ष चूडाकर्म संस्कार के माध्यम से बाल कटवाने को कहा है |


      जब शिशु मां के गर्भ में होता है तो वह पानी की एक थैली में बन्द होता है। उसका सब से कोमल अंग सिर ही होता है। इसलिए इसकी रक्षार्थ गर्भ काल में ही उसके सिर पर बाल आ जाते हैं। गर्भ के दृषित जल से यह बाल दूषित होते हैं। इसलिाए गर्भ के बालों का कटवाना स्वच्छता की दृष्टि से भी आवश्यक होता है। इन्हें कब कटवाया जावे , इस सम्बन्ध में कोई भ्रमित न रहे। इसलिए वैदिक समाज व्यवस्था में इस का एक समय निश्चित किया गया है । यह संस्कार इसी समय की ही याद दिलाता है |


        गर्भ के दूषित बाल तो होते ही हैं, फिर इनके बडा होने से बालक गमी का अनुभव करने लगता है , दांत निकालते समय , यह बाल उसमें झुंजलाहट उत्पन्न करते हैं। यह बाल सफाई की कमी के कारण सिर में खाज , खुजली , फोडा फुन्सी, दाद आदि का कारण बनते हैं । अतः इस समय इन्हें कटवा कर इन रोगों से बालक की रिक्षा की जा सकती है। इसी कारण हमारी संस्कृति ने मुण्डन को एक आवश्यक संस्कार के रूप में मान्यता दी है। 


      बालों के कारण सिर भारी रहने लगता है। इस से बच्चा गर्मी तव दर्द भी अनुभव करने लगता है। अतः इन्हें कटवाने से उसे आराम मिलता हैं। बालों के बार बार कटने से उन्हें सन्तुष्टि मिलती हैनए घने सुन्दर व चमकीले बाल आते हैं , जो बार बार कटने के कारण जडों से मजबूत भी होते हैं । इसलिए इनका अनेक बार कटवाना उपयोगी होता है।


      सिर में तालु होता है। यह मानव शरीर का एक महत्त्व पूर्ण अंग है। इसकी मजबूती के लिए भी बालों को कटवाना उपयोगी हैनख, रोम व केश मनुष्य की शक्ल बिगाडते हैं। अतः इनकी कटाई आवश्यक है। इससे आराम का अनुभव होता है ,पुष्टि आती है, सौभाग्य में वृद्धि होती है,सफाई व सौन्दर्य भी बढते हैं तथा आयु लम्बी होती है। अथर्ववेद में तो इस हेतु स्पष्ट आदेश भी दिया है कि यदि लम्बी आयु की आकांक्षा है तो क्षोर करवाएं। इससे बुद्धि की भी वृद्धि होती है। इसलिए ही गुरुकुल में प्रवेश के समय ब्रह्मचारी का मुण्डन करने की प्रथा है।


      मुण्डन तो में अनेक बार किया जाता है किन्तु तीन वर्ष की आयु में विशेष रूप से एक संस्कार के रूप में मित्रों व सम्बनिधयों की उपस्थिति में समारोह पूर्वक इसे करवा कर बालक का प्रथम र मानो एक प्रकार से उसे समझाया जाता है कि उत्तम बुद्धि की के लिए आज के पश्चात् समय समय परतूंने मुण्डन करवाते न है। इस अवसर पर नापित को अन्नादि या धन देने का विधान भी है | 


      इस प्रकार मानव जीवन के इस आठवें संस्कार का विश महत्व होने केकारण आज विश्व के प्रायः सभी समुदाय किसी न किर रूप में इस संस्कारको करते हैं। वास्तव में नाम करण व चूडाका संस्कार, यह दो ही संस्कार आज करने की परिपाटी रह गई है। शैले पुंसवन,सीमन्तान्नयन संस्कार, जातकर्म, नि ष्क्रमण, अन्नप्राशर आदि संस्कार तो कोई ही परिवार करता है। संस्कार एक सीमा बांधने के लिए होते हैं तथा इनसे बालक केव कर्तव्य बोध कराया जाता । अतः सभी संस्कार उनके महत्त्व का स्मर्ण कराते हुए अवश्य ही कर चाहिये तथा यह चूडाकर्म जिसके अपभ्रंश से जूडा शब्द बना है, शरी के सब से ऊपर का अंग होने के कारण चोटी के नाम से भी जान जाता है, यह मुण्डन संस्कार करके इस के लाभों को अवश्य प्राप करना चाहिये | 


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