धर्मशास्त्र : एक परिचय


धर्मशास्त्र : एक परिचय


       जीवन, जीवन को बनाए रखना, जीवन की रक्षा करना, यह मनुष्य की सबसे बड़ी कामना है। इसी लिए जीवन के साथ दो चीजें जुड़ी हुई हैं। जैसा मैंने अभी पापको शुरू में कहा था कि जीवन शरीर के माध्यम से अभिव्यक्त होता है । हमारा जीवन है संसार मेंतो हम जीवन को इसी रूप में पहचानते हैं । जब तक शरीर है तब तक जीवन है। इसलिए इस शरीर की रक्षा करना, यह, दूसरे शब्दों में, जीवन की रक्षा करना ही है शरीर की रक्षा करना। यह जीवन की रक्षा करने के लिए उसी तरह से काम्य है जैसे कि जीवन काम्य है।


       ६. ऋषियों ने इसलिए दो पुरुषार्थ स्वीकार किए। एक पुरुषार्थ का नाम है काम, और दूसरे का नाम है अर्थ पहले अर्थ शब्द को हम समझ लें । संक्षेप में, अर्थ शब्द संस्कृत में बहुत सारे प्रथं रखता है । यहाँ पर जो अर्थ शब्द का अभिप्राय है वह प्राज की बोली में, एक विद्या विकसित हुई है जिसे हम 'इकॉनॉमिक्स' कहते हैं, साइन्स ऑव वैल्य । वैल्य का मतलब, प्राप लोगों में से जो लोग पहले इस विद्या से परिचित हो गये हों वे जानते होंगे । 'इकॉनामिक्स' में जिसे हम वैल्थ या अर्थ कहते हैं-अर्थशास्त्र ग्राज इकॉनामिक्स को ही कहते हैं-इसके दो लक्षण उन्होंने स्वीकार किये हुए हैं। एक सबसे बड़ा लक्षण तो यह है कि वह उपयोगी होना चाहिए । उसकी यूटीलिटी होनी चाहिए। जिसको यूटिलिटी नहीं है वह मेरी दृष्टि में अर्थ नहीं है। अर्थ वह है जिसकी मेरे लिए उपयोगिता है।


       हम लोग व्यवहार में भी देखते हैं। एक कहावत भी है; आपने पढ़ी होगी। जब मन हमारा किसी भी विषय के प्रति निवृत्त हो गया, उदासीन हो गया तो फिर चाहे वह कितनी भी आकर्षक या लोक की दृष्टि से मूल्यवान् वस्तु हो वह उस प्राणी के लिए तो तिनके के बराबर है । कहा जाता है, 'जब आये संतोषधन सब धन धूलि समान ।' इसी भावना से कहा जाता है क्यों कि अब उस धन की उस संतोषी व्यक्ति के लिए यदि उपयोगिता नहीं है तो उसका प्राकर्षण उसके लिए समाप्त हो गया । तो पहली तो अर्थ की अावश्यकता है उपयोगिता । लेकिन मनुष्य एक विचित्र प्राणी है। उपयोगिता की दृष्टि से हम देखते हैं, हवा की, पानी की, जो प्रकृति ने हमको उन्मुक्त रूप से दिए हुए हैं उनकी, सबसे ज्यादा पावश्यकता है। लेकिन अर्थशास्त्र में उन्हें अर्थ नहीं कहते ।


       एक शतं और लगाई हई है कि जिसकी उपलब्धि हमारे लिए सीमित मात्रा में हो उसी को हम अर्थ कहते हैं, यानी किसी भी अर्थशास्त्र में हवा को अर्थ (धननहीं माना जाता । हाँ, जब पानी के अन्दर अगर हम गोता लगा रहे हैं जहाँ साँस लेना मुश्किल होता है और एक मास्क हमको साथ में ले जाना पड़ता है तो वह भी धन हो जाती है, लेकिन इसी लिए क्योंकि वहाँ वह दुर्लभ है । अावश्यकता हमको उसकी है इसलिए, यदि वह हमको सुलभ हो सके तो, धन है अन्यथा, यदि हमको सरलता से उपलब्ध है तो फिर, हम उसे धन नहीं कहते । हमारे यहाँ भी पुरुषार्थों के अन्तर्गत जिस अर्थ का उल्लेख किया जाता है उस अर्थ का यही अभिप्राय है। इसलिए जीवन के संरक्षण के लिए जिस किसी भी भौतिक पदार्थ की हमको आवश्यकता है वह सारा का सारा हमारी दृष्टि से भी अर्थ ही कहलाता है ।


       ७. इस अर्थ का हम उपभोग करते हैं। मैंने कहा प्रापको, प्राणी जो चेतन है-वह भोक्ता है । यह जो अर्थ है यह भोग्य पदार्थ है । इस भोग्य पदार्थ का हम उपभोग करते हैं । उपभोग करने के लिए प्रकृति ने या ईश्वर ने हमको शक्तियां दी हैं और वे शक्तियाँ हैं, इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के माध्यम से हम उनका उपभोग करते हैं । व्यावहारिक दृष्टि से यह आप स्वयं जानते हैं, जितने भोग्य पदार्थ हैं संसार के उनको हमने पांच श्रेणियों में विभक्त किया हुअा है। रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श । 


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