दुःख का स्वागत करें
दुःख का स्वागत करें
नमः सु ते नि ते निग्मतेजोऽयस्मयं विचूता बन्धम् एतम् ।
यमेन त्वं यम्या सविदानोत्तमे नाके अधिरोहयैनम् ।
नभः सु ते नि:-ऋते तिग्म-तेजः अयः-मयम् वि-चत बन्धम् एतम् । यमेन त्वम् यम्या सम्-विदाना उत्-तमे नाके अधि-रोहय एनम् ।
इस भूतल पर सुख और दुःख, दोनों का बराबर स्थान है। दूसरे शब्दों में दोनों मानवमात्र के लिए अनिवार्य है । राजा- रंक, ज्ञानी एवं अज्ञानी इनसे नहीं बच सकते । जहां सुख है वहां दुःख है; इसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। शास्त्रों ने भी इसे सिद्ध कर दिया है। दुःख प्राप्त होने पर मूर्ख रोते हैं पर ज्ञानी हंसते-हंसते उसका स्वागत करते हैं। किसी गीतकार ने कहा है-सुख तो आता जाता है: दुःख तो अपना साथी है।
वास्वत में दुःख ही मानवजीवन की सच्ची कसौटी हैदुःख अभिशाप नहीं है, वरदान है। दुःख की धार इतनी तेज है-इतनी तेज है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती । यह सारे बन्धनों को काट देती है, मानव में प्रेरणा भरती है, जीवनसंचार का भाव उत्पन्न करती है।
सुख में बर्बाद होने की अधिक संभावना रहती है। किन्तु दुःख तो अहर्निश कुछ न कुछ देता ही रहता है । अत एव दुःख सच्चा साथी है । दुःख में पड़कर मानवमन निर्मल एवं पावन बन जाता है। इस निर्मल मन के द्वारा सद्ज्ञान एवं सद्बुद्धि की सच्ची उपलब्धि होती है। एतदर्थ हम सब हृदय से दुःख का स्वागत करें, आरती उतारें, अभिनन्दन करें, जय-जयकार मनावें और अखिल विश्व के लिए सर्वोच्च मार्ग करें।