मानव-जीवन-गाथा
मानव-जीवन-गाथा
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत, बन्दे। करले प्रभु से प्रीत
दैहिक-दैविक-भौतिक ताप से, मत होना भयभीत ॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत....
यह जग है एक मुक्त मंच, अद्भुत इसका निर्माता।
जो भी आता स्वतंत्रता से, अपना पात्र निभाता।
दिव्य ऋचायें [जे कहीं, मर्सिया गजल कहीं गीत॥१॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत......
सागर है मरुथल है कहीं है, गंगा-जमुना सी धारा।
कहीं धधकते ज्वालामुखी, कहीं हिमगिरि अगम अपारा।
धरा-कम्प के ध्वंसो में वह, भरदे सृजन संगीत ॥२॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत.....
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, ईर्षा, द्वेष और मत्सर।
इनकी भूलभुलैया में भटके, चंचल मन तन नश्वर
प्रभु पितु-मात है स्वामी-सखा, क्यों होता नहीं प्रतीत ॥३॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत......
उसकी न्यायसभा में चलता, नहीं वकीली दावा।
वही कृपा पाता है जो, करता मन से पछतावा।
जब जागे तब जान सवेरा, बिसरा, अधम अतीत ॥४॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत.....
पंच ज्ञान कर्मेन्द्रियों मय दी, प्रभु ने कंचन-काया ।
क्षिति जल पावक गगन समीर, सम्पन्न प्रकृति की माया।
ऋग्-यजु-साम- अथर्ववेद दिये,मोक्ष मार्ग के मीत ॥५॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत......
मदिरा आलिंगन चुम्बन, मैथुन प्रिय नेता अभिनेता।
यम-नियम धर्म-दर्शन संयम से,बँधा खड़ा नचिकेता।
कुपथ अहं असमंजस तज गह पथ, वैदिक परम पुनीत ॥६॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत..
जीवन-मरण धरा के, धर्म मान धर धीर।
सेवा संवेदना महामंत्र है, हर जन जन की पीर।
मानव जीवन गाथा में न हो, हार सदा हो जीत ॥७॥
प्रभु-भक्ति मधुर नवनीत......