पितृ-यज्ञ
पितृ-यज्ञ
ब्रह्मयज्ञ और देवयज्ञ के पश्चात् तीसरा दैनिक यज्ञ, जो आर्यों को अनिवार्य रूप से नित्य करना चाहिए, वह पितृयज्ञ है। अर्थात् जीवित माता-पिता, सदाचारी विद्वान्, पण्डित, साधु और अन्य वृद्ध जनों की सेवा अन्न, वस्त्र, उत्तम अन्न, घी, दूध इत्यादि से श्रद्धापूर्वक करना और उनको प्रसन्न रखना ही वेद के अनुसार सच्चा श्राद्ध और तर्पण हैमृतकों तक कोई वस्तु पहुंचना असम्भव है। अतः मृतकों का श्राद्ध और तर्पण बिल्कुल निरर्थक है।