राजनीति का धर्म बनाम धर्म की राजनीति
राजनीति का धर्म बनाम धर्म की राजनीति
(विधा-व्यंग)
साधो! राजनीति के धर्म के बारे में अपना मत स्पष्ट रखो।राजनीति का एकमात्र धर्म कुर्सी पाना ही होना चाहिए।कुर्सी का आसन ही लक्ष्य हो,बाकी उचित-अनुचित के फेरे में मत पड़ो।कुर्सी के लिए दोस्ती-दुश्मनी का भेद मत करना।सरकार बनाने के लिए दोस्तों से दुश्मनी करनी हो या दुश्मनों को दोस्त बनाना पड़े तो कोई हिचक मत रखना।याद रखना चाहिए कि राजनीति में कोई किसी का नहीं,कोई अपना तभी तक है जब तक लाभ हो,मतलब निकलता हो,कुर्सी बरकरार रहे,सत्ता के साथ चिपके रहें,सत्ता का सुख निष्कंटक मिलता रहे।सत्ता में रहते हुए जन सेवा के लफड़े न पड़कर खुद के लिए,परिवार और रिश्तेदारों के लिए अधिक से अधिक धन एकत्रित करना ही एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए।इसके लिए धर्म यह कहता है कि सबकुछ धर्म है अगर कुर्सी के लिए किया जाए।वहीं दूसरी तरफ धर्म का खुलकर,छूटकर उपयोग राजनीति के लिए करना आज की राजनीति का धर्म है।धर्म की राजनीति करते समय यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि लोगों को उकसाकर,भड़काकर अपना उल्लू जो उलट गया हो उसको सीधा कर लेना।धर्म के नाम पर दंगे कराना, आपसे में लड़वाना आदि पुनीत कार्य पूरे धार्मिक भावना से करना चाहिए।यह धर्म शॉर्टकट तरीके से सत्ता दिलवा देती है।इसलिए धर्म की राजनीति करते हुए राजनीति का धर्म निर्वहन करना चाहिए ताकि सत्ता सुख से चिपके रहो।इस मंत्र से साधना करने का फल मिलेगा ही इसकी पूरी गारन्टी है।इसलिए साधो!साधना में लग जाओ।इस पथ के सभी साधक विधानसभा से लेकर संसद तक बहुतायत से पाए जाते हैं।उन्हें गुरु मानकर लग जाओ।तुम्हें सफलता और सम्पन्नता धर्म और राजनीति की सीढ़ी पर मिलेगी।
अस्तु।
प्रशान्त करण