ऋषि दयानन्द सरस्वती जी को प्रणाम
ऋषि दयानन्द सरस्वती जी को प्रणाम
जब भारत में चारों ओर से, छाई थी कलुषता।
आडम्बरों पाखण्डों, पोंगा पण्डितों की थी सत्ता।।
ऋषि ने बताया, वैदिक ज्ञान का सुगम रास्ता
पञ्च महायज्ञ करो, छोड़ो अन्धविश्वासों से वास्ता।।
दस नियमों से, दस इन्द्रियाँ शुद्ध होंगी।
कोई न होगा, वासनाओं का रोगी।।
सोलह संस्कार जीवन, परिष्कृत बनता योगी
पढ़ो नित्य सत्यार्थ प्रकाश, कोई न होगा भोगी।।
महर्षि जी ने किया स्थापित, आर्य समाज महान।
वेद पढ़े शूद्र, नारी, सब ईश की सन्तान।।
छुआछूत मिटाई, दिलाया नारी को सम्मान।
आप सद्गुरु वृजानन्द दण्डी के शिष्य विद्वान।।
मानव मत भटक, अन्तर्मुखी बन खुद को जान।
तीर्थदर्श, मूर्ति पूजा, बली प्रथा, मृतक भोज अज्ञान।।
मनुज तन दुर्लभ पाया, कर ओ३म् का ध्यान
मात पिता गुरु की सेवा, पूजा 'सुन्दर' शान।।
ऋषि दयानन्द सरस्वती जी को प्रणाम।
प्रत्येक मानव जीवन में करता रहे नेक काम।।
सुन्दरलाल चौधरी