सब-कुछ देने में समर्थ
सब-कुछ देने में समर्थ
ईश ह्यग्निरमृतस्य॒ भूरेरीशे रायः सुवीर्यस्य॒ दातोः|
मा त्वा वयं सहसावन्नवीरा माप्सवः परि षदाम मादुवः ॥
विनय-हे अग्ने ! हम तुम्हारी बहुत-सी विफल उपासना करते हैंतुम तो सर्वशक्तिमान् हो, हमें सब-कुछ दे सकते हो। हमें प्रभूत अमृत, विविध प्रकार का आध्यात्मिक ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ हो, सुवीरता आदि सहित सब प्रकार का भौतिक धन देने में समर्थ हो, परन्तु हम ही हैं जो तुम्हारी आराधना करने के अयोग्य हैं, अतएव तुम सर्वदाता से भी हम कुछ प्राप्त नहीं कर सकतेहम कितने मूर्ख हैं कि निर्वीर्य होकर, विकारयुक्त होकर और सेवा-रहित होकर तुम्हारा भजन करना चाहते हैं ! भला, हम कायर लोग, हे सहसावन् ! तुम्हारी क्या उपासना कर सकते हैं? हम विकारयुक्त, मलिन हृदयोंवाले तुम्हारी क्या उपासना करेंगे? हम सेवारहित स्वार्थी पुरुष तुम्हारी उपासना से क्या लाभ प्राप्त करेंगे? अतः हमने आज से निश्चय किया है कि अब हम वीर्यहीन, विकृत और असेवक होकर कभी तुम्हारी उपासना में नहीं बैठेंगे। हम सब कमज़ोरियों को हटाकर, निर्भय वीर होकर तुम्हारे सच्चे उपासक बनेंगे, सब काम-क्रोधादि मलिनताओं को दूर करके शुद्ध-सुरूप बनकर तम्हारी आराधना करने बैठेंगे और दिन-रात निरन्तर सेवा-कार्य करते हुए ही अब हम प्रातः-सायं तुम्हारा भजन किया करेंगे सचमुच तभी हम तुम्हारे पास बैठने के योग्य होंगे, तुम्हारी उपासना करने के अधिकारी बनेंगे और तभी उपासना द्वारा तुमसे तभी अमृतत्व आदि आध्यात्मिक ऐश्वर्यों का, वीरता तथा अन्य भौतिक ऐश्वर्यों को भी प्राप्त कर सकेंगे।
शब्दार्थ-अग्नि: = परमेश्वर हि = निश्चय से भूरेः = बहुत प्रकार के अमृतस्य = अमरपन के, आध्यात्मिक ऐश्वर्य के दातोः = देने में ईशे = समर्थ है और सुवीर्यस्य = सुन्दर वीरतासहित रायः = धन के, भौतिक ऐश्वर्य के देने में ईशे = समर्थ है, परन्तु सहसावन् = हे सर्वशक्तिमन् | बलवन् ! वयम् = हम त्वा = तेरी अवीराः = वीरतारहित, कायर होकर मा = मत परिषदाम = उपासना करें अप्सवः = कुरूप, विकृत होकर मा मत उपासना करें और अदुवः = असेवक होकर मा = मत उपासना करें