शुद्धि आन्दोलन और घर वापसी
परमात्मा ने जीवात्मा के पूर्ण कल्याण के लिए यह सृष्टि, सृष्टिक्रम, सृष्टि के नियम, न्यायव्ययवस्था और वेद का ज्ञान प्रदान किया है। सृष्टि में जो कुछ भी है, वह सब कुछ वेदों में है और जो वेदों में है, वह सब सृष्टि में विद्यमान है । जीवात्मा यह साधक है और जड सृष्टि, शरीर आदि सभी साधन हैं। और इन सबका एकमेव साध्य है परमात्मा !
साध्य है परमात्मा ! परमात्मा ने सृष्टिक्रम व निसर्ग में सभी साधन शुद्ध रखने की व्यवस्था की है । वेद का सत्यज्ञान आत्मा को इन साधनों को शुद्ध रखने, कार्यक्षम बनाने और उनका सदुपयोग करके आत्मकल्याण व मोक्ष(मुक्ति) प्राप्त करने के लिए आदेश व निर्देश यह उपदेश व संबोधन के रुप में किया है। आत्मकल्याण के साधन भी शुद्ध होने चाहिए और वेदज्ञान भी शद्ध होना चाहिए । जैसे नदी का पानी दर जाकर मलिन होता है, तब पानी उपयोग के लायक नहीं रहता, वैसे ही वेदरुपी ज्ञानगंगा कालान्तर में अशुद्ध हुई और अज्ञान, अंधविश्वास आदि सारे विश्व में फैलते गये। व्यक्तिपूजा, जडपूजा, हिंसा
आदि की परम्परा शुरु हुई और जो कल्याण का रास्ता एक ही था, वह भी अनेकों अकल्याण के रास्तों में परिणत हुएसत्यज्ञान भ्रष्ट हो गया। लोगों का आचरण भी भ्रष्ट होता गया । निसर्ग के नियमों का पालन नहीं हुआ। इसलिए मानवमात्र दःखी व रोगी बन गया है। सुख, शांति और आनंद के लिए शुद्धि होनी आवश्यक है। निसर्ग की शुद्धि, शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि, चित्त की शुद्धि और सबसे महत्व की है-ज्ञान एवं आचरण की शुद्धि !
गुरु विरजानन्द दण्डी ने सबसे पहले म.दयानंद की शुद्धि की और पौराणिक ग्रन्थों व उनकी मान्यताओं को यमुना नदी में बहाकर उन्हें वेद का शाश्वत ज्ञान दिया । साथ ही वेदधर्म, ईश्वर, आत्मा व आत्मकल्याण इन सभी का सही रास्ता बता दिया। इन्हीं से मानवमात्र को सुख, शांति, आनंद व मोक्ष(मुक्ति) मिल सकती है, यह भी बताया। उन्होंने सही अर्थों में अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त किया । शुद्धि के लिए जो संस्कार करने पड़ते हैं व वे भी बताये और गुरुदक्षिणा के रुप में दयानंद का समग्र जीवन लेकर उन्हें आदेश
दिया कि, 'दुःख के सागर में पडे हए मानवमात्र को वेद का सही मार्ग बताओं और सब पर दया करो।' तब शुद्ध हए दयानंद ने वेद को माननेवाले पौराणिक लोगों की शुद्धि आरम्भ कर दी तथा उन्हें शुद्ध वैदिक (मानवता) धर्म में प्रविष्ट किया।
ऋषि दयानंद के मन्तव्यानुसार धर्मग्रंथ वेद एक ही है । सृष्टिनिर्माता, सबका पालन करनेवाला, संहार करनेवाला, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, परमेश्वर भी एक ही है, जो कि निराकार व निर्विकार है। और धर्म भी एक ही वैदिक धर्म जो आत्मा को प्रिय है। सृष्टि के नियम व परमेश्वर के आदेश का पालन करना यही सब प्रकार के सुख, शांति व आनंद का मार्ग है। तथा मानव की जाति भी एक ही है । इस तरह वेद के आधार पर सत्यधर्म, जो कि सार्वभौम व एक है । वह सर्वकालीन व सार्वजनिक भी है। यही सिद्धान्त महर्षि ने दुनिया को बता दिये और इन विचारों व आचरण के आधार पर पौराणिकों की भी शुद्धि की।
पहली शुद्धि पौराणिकों की हुई और उनको श्रेष्ठ (आर्य) बनाने हेतु सन् १८७५ में 'आर्यसमाज' की स्थापना की। आगे भी ऋषि का काम चलते रहा । आर्य समाज के माध्यम से वैदिक विचारों के प्रसार का तथा मानवजाति के उत्थान का कार्य बढता रहा । शास्त्रार्थ होते रहे. चर्चाएँ व शंकासमाधान भी होते गये तथा शुद्धिकरण का काम भी बढने लगा। स्वामीजी के शुद्धी का आधार मानवमात्र था और वेद व वैदिक सिद्धान्त थे । वे सभी पक्षपातरहित थे । इसीलिए उनके सामने पंथवाद, जातिवाद, अज्ञान, अंध:विश्वास आदि कुरीतियों से समाज को मुक्त करके उसे सत्यज्ञान, वेदप्रतिपादित ज्ञान, मानवजाति, आत्मकल्याण का मार्ग बताना व उसे स्वीकार करवाना यही था। वेदज्ञान सूर्य के समान सारे मानवमात्र के लिए है, यह स्वामीजी बताते रहें। इसलिए उनके सामने मनुष्यकृत मत-पंथ व जातिभेद को कुछ भी स्थान नहीं था।
महर्षि दयानन्द के पश्चात् उनके शिष्यों ने जो भी शुद्धिकरण का कार्य किया, वह हिन्दुओं के लिए आर्य समाज के माध्यम से प्रचार करके किये। जडपूजा, कर्मकांड, जातिवाद, दुराचार, दुर्व्यसन आदि बुराईयों से मुक्त करके किये। उसके साथ-साथ बाकी पंथों के लोगों का भी शुद्धिकरण किया। आर्यसमाज के शुद्धिकरण का उद्देश्य भी म.दयानंद के अनुसार ही था। इसलिए मुसलमान, ख्रिश्चन, जैन, बौद्ध आदियों ने शुद्धिकरण में भाग लिया और वे शुद्ध सनातन वैदिक धर्म में प्रविष्ट हुए । ये सब लोग केवल वेद को माननेवाले थे । वे पौराणिक हिंदू धर्म, उसके तत्त्वज्ञान व उसके आचरण को देखकर वैदिक धर्म में नहीं आये।
सत्य की जिज्ञासा रखनेवाले तथा 'सत्याचरण की आवश्यकता को अनुभव करनेवाले सभ मतों के लोगों ने सभी पंथों से अलग वैदिक सत्यधर्म' को स्वीकार किया और वे सत्य सनातन वैदिक धर्म में प्रविष्ठ हुए। उन्होंने आर्य समाज के माध्यम से शुद्धिकरण कर लिया। वे हिन्दू धर्म में प्रविष्ट नहीं हुए । उन लोगों ने वैदिक धर्म की सार्वभौमिकता, सार्वकालिकता, सार्वजनिकता, सर्वकल्याणकारिता आदि बातें वेदज्ञान में देखी। उन्होंने आत्मकल्याण के मार्ग देखा, परखा और वे शुद्ध हुए। विद्वान् बनकर वे वैदिक धर्म का प्रचार करने लगे, हिन्दू धर्म का नहीं।
आर्य समाज के शुद्धिकरण को हिन्दुओं का पहले से विरोध रहा है । यहाँ बाहर जाने के लिए अनुमति है, किन्तु अन्दर आने की अनुमति नहीं । जातिवाद, ईश्वरवाद, छूत-अछूत, अन्याय, अत्याचार, अज्ञान अंध:विश्वास आदि के कारण अनेकों हिन्दू लोग बाहर गये, किन्तु किन्तु उन्हें पुनश्च वापस लाने का कार्यक्रम हिन्दुओं ने नहीं बनाया। इससे देश में अनेक मत व पंथ बढ़ते गयेआत्महत्याएं हुई, अनेकों को मार डाला गया.... आज भी यह बड़े पैमाने पर हो रहा है। कुल की प्रतिष्ठा का झूठा अभिमान इन लोगों में है । तथाकथित धर्मगुरुओं में भी बड़ा अभिमान है । अकबरबिरबल की कथा में भी आता है कि किसी का शुद्धिकरण नहीं हो सकता। बंगाल के काला पहाड की कहानी भी प्रसिद्ध है । अनेकों प्रेमी युवक-युवतियों ने उनकी शुद्धि न होने से आत्महत्याएँ की है । इसीलिए शुद्धिकरण तथा शुद्धि आन्दोलन का श्रेय केवल आर्यसमाज' व वैदिक धर्मी आर्यजनों को ही जाता है। *हिन्दू 'शुद्धि' क्यों नहीं कर सकता?
हिन्द के पास अनेक मत-पंथ. अनेकों देवी-देवता, विविध उपासना पद्धतियाँ, अनेकों जातियाँ, अनेकों चढावें, अनेकों स्मशानभूमियाँ, अनेकों मंदिर, अनेकों गुरु, अलग-अलग गुरुमंत्र, अनेकों पुजारी तथा उनमें भी अलग-अलग गुरु हैं। इस प्रकार की खिचडी एक दूसरे के विरुद्ध है । दलितों को मंदिर प्रवेश नहीं, रोटी-बेटी व्यवहार भी एक-दूसरे के साथ जमता नहीं। हिन्दू की ऐसी विचित्र अवस्था है । इनके पास कोई गैरहिन्दू 'हिन्दू होना चाहता है' तो उसके लिए व्यवस्था नहीं है । यदि कोई अन्य पन्थी हिन्द मत में आना चाहता है, तो उन्हें हिन्दू गुरु लोग निम्नलिखित कौन- सी व्यवस्था दे सकते हैं? आप उन्हें....
- कौनसे देवी-देवताओं की पूजा करने को कहेंगे ?
- कौनसे मंदिर में जाने को कहेंगे ?
- कौनसी उपासना (पूजा) करने को लगायेंगे ?
- उनका पुजारी कौनसा होगा ? उनका गुरु कौन होगा ?
- गुरुमंत्र कौनसा रहेगा ?
- जाति कौनसी बतायेंगे ?
- कौनसा धर्मग्रंथ बताओगे ?
- उन्हें कौनसी स्मशानभूमि दोगे ?
- उनकी अंत्यविधि किस प्रकार की होगी ?
- शूद्ध हुए बच्चे-बच्चियों के विवाह किन के साथ और किस पद्धति से होंगें ?
- इनमें उच्च कौन तथा नीच कौन होगा, उन्हें किसमें बिठाओगे ?
आदियों की समस्याएँ केवल और केवल मात्र सत्य सनातन वैदिक धर्म के अनुसार आर्यसमाजी लोगों ने ही दूर की है । आर्यसमाजियों ने अपनी बच्चियाँ उन्हें दी और उनकी बच्चियाँ अपने बच्चों से ब्याह दी। एक ईश्वर, एक धर्मग्रन्थ, एक जाति, एक उपासना पद्धति, एक अंत्यविधि तथा एकही अग्निहोत्र व पंच महायज्ञ आदि के मार्ग पर आर्य समाज ने उन्हें लाया। साथ ही एकही अध्यात्म मार्ग- योग भी बताया। इन सभी श्रेष्ठ बातों को देखकर ही कई विद्वान मुस्लिम वा ख्रिश्चन पंथ में से आर्यसमाज में प्रविष्ट हुए, यह विशेष बात है। इस विषय में आर्यसमाज और पौराणिक इन दोनों का भेद न बताते हुए शुद्धिकरण से हिन्दू हो गये, यह बताना एक भ्रम है । इसी भ्रम के कारण दुनिया में दयानन्द और आर्यसमाज ने भी हिन्दुओं के लिए ही शुद्धि आन्दोलन किया, ऐसा कहना गलत होगा।
इससे आर्य विद्वान् व आर्यसमाज में भी हिन्दुत्ववादी हैं, संकीर्ण हैं और गैरहिन्दू विरोधी है, ऐसी धारणा बन जाएगी। इस तरह के विचारों से महर्षि दयानन्द व आर्यसमाज के साथ भी कतर कृतघ्नता होगी और फिर दनिया से सत्य सनातन वैदिक धर्म लुप्त हो जायेगा।
. छत्रपति शिवाजी महाराज ने शुद्धि की, पर उनका आधार महर्षि दयानंद का शाश्वत सत्यज्ञान-वेद का नहीं था। उनका आधार हिन्दू-मुसलमान ही था। इसलिए उनके शुद्धिकरण को भी तथाकथित हिन्दू धर्म मार्तण्डों ने स्वीकृति दी नहीं। शुद्ध हुए गैरहिन्दू लोगों के बच्चे-बच्चियों के प्रश्न नहीं छुडाये । फिर से वे और भटकते रहे। महर्षि दयानंद जैसे महापुरुष के कारण तथा उनके द्वारा स्थापित आर्यसमाज द्वारा इतनी शुद्धियाँ, इतना साहित्य सृजन होने पर भी हिन्दू समाज के धर्मगुरुओं व धर्ममार्तण्डों ने इससे कुछ भी सबक नहीं सिखा। इसलिए डॉ.बाबासाहब आम्बेडकर को भी हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म (मत) स्वीकारना पड़ा। वेद का ज्ञान माननेवाले बिघडे हुए हिन्द पंथ ने ही दुनिया के सभी मत-पंथ निर्माण किये हैं, किन्तु उन्हें पश्चाताप नहीं होता और आज हमारी संख्या कम हुई ऐसा कह रहे है। किसी मुसलमान ने हिन्दू स्त्री को अपनी पत्नी बनाकर रखा, तो उस . हिन्द महिला के बच्चे मुसलमान ही माने जाते है।इसके विपरीत किसी हिन्दू ने मुसलमान स्त्री को पत्नी के रुप में रखा तो उसके बच्चे भी मुसलमान ही समझे जाते हैं। ऐसा है हिन्द का अन्य पंथों के साथ व्यवहार ? अत: घर वापसी का आधार दयानन्द का अलग और हिन्दुओं का अलग ।
यह विश्व एक घर है, मानवजाति भी घर है तथा सत्य सनातनी वैदिक धर्म यह भी घर ही है । एक ईश्वर, एक धर्मग्रंथ-वेद, एक धर्म-वैदिक मानवधर्म, एक जाति-मानवजाति, एक मार्गअध्यात्म 'योग' मार्ग है । जो-जो वैदिक धर्म रुपी घर को छोडकर असत्य, अज्ञान, अंध:विश्वास आदि में पडे है, उन सभी पंथ व मतवाले यथा-हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, ख्रिश्चन, पारसी, चार्वाक, भौतिकवादी, अध्यात्मवादी, नास्तिक, आस्तिक आदियों को सत्य वैदिक धर्म में प्रवेश करना ही सही अर्थों में घरवापसी है, जो कि सार्वभौम, सार्वत्रिक व सर्वकालिक है। अतः अविद्याअन्ध:कार व कुरीतियों से ग्रस्त हिन्दसहित अन्य सभी मनुष्यकृत मतपन्थों व उनके जातियों की सही घरवापसी 'विशद्ध वैदिक धर्म में प्रविष्ट होना ही है । अज्ञान व अन्धविश्वासों से ग्रस्त हिन्द मत में आना न तो शुद्धि हो सकती है और न ही घरवापसी ! इसलिए शुद्धि आन्दोलन व घर वापसी के मुद्दे को यथार्थ ढंग से समझना ही बुद्धिमत्ता है।
- डॉ. ब्रह्ममुनि (प्रधान,म.आ.प्र.समा)
-आर्यसमाज, परली-वै. जि.बीड