सुखदात्रि वधू
सुखदात्रि वधू
स्योनाभव श्वशुरेभ्यः स्योना पत्ये गृहेभ्यः स्योनार
सर्वस्यै विशे स्योना पुष्टमेषां भव॥१॥ (अ०४।२।२७)
अर्थात् हे वधु ! (श्वशुरेभ्यः) श्वशुर के लिये (स्योना) सुखदायी (पत्ये) पति के लिये (स्योना) सुखदायी (गृहेभ्यः) समस्त गृह के लिये (स्योनाभाव) सुख देने वाली हो (अस्य, सर्वस्यै विशे) इस सब प्रजा के लिये (स्योना) सुखदात्री हो और (एषाम् पुष्टाम् भव) इन सबके पोषण के लिये तत्पर हो।
दृष्टव्य- इस मन्त्र में वधू को समस्त गृह के लिये सुखदात्री और पोषणकर्ती होने का विधान किया है।