सुन्दरता की कुरूप साधना

सुन्दरता की कुरूप साधना


 


          'फ़ शन' का मूल शायद 'पशु-मन' है। इस पशु-मन ने कितने नाच नचाये हैं ? बच्चों को दूध मिले या न मिले, कोई परवाह नहीं; पशु-मन के आदेश का पालन पहले होगा। नए से नए चलन का हार होना ही चाहिए पहनने के लिए। महँगी दर्जनों साड़ियां होनी चाहिए। तरह-तरह की प्रसाधन-सामग्री चाहिए । दिखावे के लिए इतना जुटा लेती हो जितना किसी पड़ौसिन के पास न हो। यह पशु-मन की ललक तुमको कितना संवेदन- हीन बना रही है ?


          यदि तुम्हारे हृदय में संवेदना का ज्वार पहले ही उमड़ता होता तो क्या घर में कलह करके पति को बाध्य करतीं पड़ौसिन जैसा चमड़े का पर्स खरीद कर लाने के लिए। इसकी कोमलता देखकर प्राकर्षित हो गई न? वह बछड़े की खाल का बना हुआ है। बछड़े की जीवित रहते खाल उतार ली गई थी ताकि मरने के बाद चमड़े में प्रा जाने वाली कठोरता न आने पाये। इससे भी मुलायम चमड़ा वह होता है जो गर्भस्थ बछड़े के शरीर पर से उतार लिया जाता है। जिस गाय को माँ की ममता का आदर्श माना जाता था, उसकी सन्तान के साय इतनी करता क्यों बरती जाती है ? केवल इसलिए कि उससे पर्स और मुलायम जूतियां बना कर तुम्हारे पशु-मन की भूख को सन्तुष्ट किया जा सके।


          कभी तुमने सोचा कि तुम्हारी अधिक सुन्दर लगने की आकांक्षा ने कितना कसाई बना दिया है आदमी को ? तुम्हारा फ़र वाला कोट क्या ऐसे ही बन गया है ? उसके लिए न जाने कितने फ़रदार प्राणियों को प्राणों की बलि देनी पड़ी है। तुम अधिक सुन्दर दिखाई देने के लिए जिन प्रसाधनों को काम में लेती हो उनमें जितने रासायनिक पदार्थ काम में लिए गए हैं उनका बन्दरों पर, भेड़ों पर कितनी ही बार परीक्षण किया गया है । खरगोशों की अांखें निकाल कर उन पर परीक्षण किए गए है।


            भरत की माता शकुन्तला में भी आभूषणों की ललक तो थी; पर उसने कभी लताओं के फल और पेड़ों के किसलय तोड़ कर कर्णाभूषण नहीं बनाए । वह अपने लगाए पेड़ों को पानी पिलाए बिना स्वयं पानी नहीं पीती थी। मृग-शावक को पुत्र की तरह से पोषित करने में कोई बाधा नहीं आई। सीता के लिए आश्रम की वन-ज्योत्स्ना सखी बन गई थी। आज यह क रता कहाँ से उत्पन्न हो गई नारी में ? यह पशु-मन कहाँ से आ टपका, जिसकी राक्षसी भूख मिटती ही नहीं है ? 


            सुन्दर तो तुमको प्रकृति ने बनाया है। विधाता की 'प्राद्य-सृष्टि' कहलाने का गौरव मिला है तुमको । इस सुन्दरता की क्रूरता से पहचान क्यों कराती हो ? सुन्दरता के लिए सुन्दर साधना करो कुरूप नहीं।


                                                                                                                                                                                       -पंचोली


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