आचमन-मन्त्रः
आचमन-मन्त्रः
ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। __
शंयोरभिस्रवन्तु नः॥ -यजुः०
इस मन्त्र का उच्चारण कर तीन बार आचमन करें।
अर्थ-'आपः' सर्वव्यापक (देवीः) सर्व-प्रकाश परमेश्वर 'अभिष्टये' इष्टानन्द की प्राप्ति और 'पीतये' पूर्णानन्द के भोग के लिए 'न:' हमें 'शं' कल्याणकारी 'भवन्तु' होवे। वह 'नः' हमारे लिए 'शंयोः' सुख की 'अभि' चारों ओर 'स्रवन्तु' वृष्टि करे।
निम्न मन्त्रों से बांई हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की मध्यमा और अनामिका अंगुलियों से जल द्वारा इन्द्रियों को स्पर्श करे।