तीर्थ-महर्षि दयानन्द

तीर्थ-महर्षि दयानन्द


         तीर्थ-महर्षि दयानन्द ने पुण्य, दान, ईश्वरोपासना, स्वाध्याय, सत्संग, सदाचार, माता-पिता, गुरुजनों तथा दीन-दुःखी की सेवा, ब्रह्मचर्य पालन, माँस मदिरा और विषय-विलासिता त्याग आदि को देवकर्म माना है। यही तीर्थ हैं 'जना: येन तरन्ति तानि तीर्थानि' जिन सत्कर्मों की साधना से मनुष्य तर जाते हैं, वही 'तीर्थ' हैं। अतः ये 'देवकर्म' ही सच्चे तीर्थ हैं।


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