वर्णधर्म
वर्णधर्म
आश्रम धर्म को अधिक व्यावहारिक बनाने के लिये हैहर मनुष्य को योग्यता, कार्य क्षमता तथा स्वभाव (रूचि) एक जैसे नहीं नह होते। अतः वह समाज के लिये अधिकतम हित साधक बन सकें, इसके लिये वर्ण व्यवस्था है। सम्पूर्ण मानव समाज में मुख्यतया चार प्रवृत्ति हैं। इन्हों का नाम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य कौर शूद्र है। इनके पीछे किसी प्रकार की भी छुटाई, बड़ाई की बात नहीं है। अपनी रूचि, क्षमता और योग्यता के अनुसार किसी एक का चयन उसी के द्वारा अज्ञान, अन्याय या अभाव में से किसी एक को मिटाने के रूप में अपने समाज, राष्ट्र और विश्व की सेवा ही वर्णधर्म का रहस्य है।