यतिवर लक्ष्मण
यतिवर लक्ष्मण
पञ्चवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण कुटीर-बना,
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर धीर वीर निर्भीक मना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है ?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा बना दृष्टिगत होता है।
बना हुआ है जिसका प्रहरी उस कुटीर में क्या धन है,
जिसकी रक्षा में रत इसका तन है, मन है, जीवन है!