अर्बन नक्सल
अर्बन नक्सल
महाराष्ट्र की नई बनी सरकार से कुछ कांग्रेसी नेताओं ने मांग की है कि भीमा कोरेगांव की सालगिरह की आड़ मे आतंक फैलाने वाले अर्बन नक्सलियों पर से केस वापिस लिए जाएँ। इन पर प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश जैसे भीषण आरोप हैं।
आज मिडिया, न्यायलय, राजनीति और विश्विद्यालय में अर्बन नक्सली प्रभावी हैं. वे एक झूठ का मायाजाल बन रहे हैं और सामान्य आदमी उस में फंस रहा है.
क्या आपको लगता है कि आतंकवादी केवल बन्दुक व बम वाले ही फैलाते हैं?
नहीं उनसे भी भयंकर हैं बौद्धिक आतंकवादी - इन्हे पहचानना मुश्किल है ! ये सफेदपोश होते हैं ! ये लेखक पत्रकार वकील प्रोफ़ेसर इतिहासकार कुछ भी हो सकते हैं ! ये विचारों से आतंक फैलाते हैं ! ये समाज में नफरत के बीज ऐसे बोते हैं जिसे समझना आसान नहीं होता !
1 जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200 वीं सालगिरह के ठीक पहले पुणे में यलगार परिषद के बैनर तले एक कार्यक्रम में जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद आदि ने उत्तेजक भाषण दिए थे। माना गया कि इससे जो उत्तेजना पैदा हुई वही भीमा-कोरेगांव में हिंसा का कारण बनी।
जब जांच आगे बढ़ी तो भीमा-कोरेगांव में फैली तो तार उन लोगों से जुड़ने लगे जो थे तो माओवादी, लेकिन छद्म तरीके से शहरों में दूसरी गतिविधियां करते थे।
पुलिस को इनके पास से कई पत्र मिले। इनमें एक प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश की ओर भी इशारा कर रहा था। एक अन्य में गढ़चिरौली में सुरक्षा बलों की कार्रवाई का बदला लेने की बात की गई थी। सुरक्षा बलों की इस कार्रवाई में 39 माओवादी मारे गए थे। रोना विल्सन के घर से बरामद एक पत्र नक्सली संगठन सीपीएम-माओवादी के मिलिंद तेलतुंबडे ने भेजा था। उस पर 50 लाख रुपये का इनाम है। इस पत्र में लिखा था कि भीमा-कोरेगांव आंदोलन बेहद प्रभावी रहा। एक पत्र में भाजपा की विजय की चर्चा करते हुए कहा गया था कि यदि ऐसा ही रहा तो सभी मोर्चों पर पार्टी के लिए दिक्कत खड़ी हो जाएगी। कॉमरेड किसन और कुछ अन्य सीनियर कॉमरेड्स ने मोदी राज को खत्म करने के लिए कुछ मजबूत कदम सुझाए हैं।
कुछ दिन पहले कुछ शहरी बौद्धिक आतंकवादी पकडे गए. कुछ लोगो इस तरह चिल्लाए जैसे किसी ने उनके हाथ पर बिच्छू रख दिया हो. क्या कभी किसी मानवाधिकार कार्यकर्ता को सैनिको के पक्ष में बोलते देखा है? इनकी नजर में सैनिको को पत्थर से मारना सही है क्योंकि ये सैनिक मानव नहीं हैं.
1-इन शहरी नक्सलियों के पक्ष में मुख्य याचिकाकर्ता हैं-- इतिहासकार रोमिला थापर प्रभात पटनायक और देविका जैन. ये सभी किसी ना किसी हिन्दू विरोधी गतिविधि से जुड़े रहे हैं.
इनके एक और वकील हैं प्रशान्त भूषण. जी हाँ वही प्रशान्त भूषण जो रोहिंग्या के पक्ष के वकील हैं.
इनके एक अन्य वकील भी हैं अभिषेक मनु सिंघवी जो अपने बिस्तर पर आने वाली महिला वकीलों को जज बनाते थे.
2- प्रसिद्ध क्युनिस्ट नेता नीलोत्पल बसु गिरफ्तारी को ही गलत बताने लगे. दिलीप सी मण्डल जैसे तथाकथित दलित चिन्तक रोने लगे कि बिना सबूत के गिरफ्तारी हो रही है. यह वही दलित चिन्तक है हैं जो चाहता हैं दलित की शिकायत मात्र से बिना जांच के ही सामान्य व्यक्ति को 6 महीने के लिए जेल हो जाए.
3- सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी के तत्काल बाद देर रात को ही हरियाणा पंजाब उच्च न्यायालय के न्यायधीश के घर में कोर्ट बनाकर सुनवाई हुई. ध्यान रखें ये सुधा भारद्वाज मानवधिकार कार्यकर्ता है कोई प्रधानमन्त्री नहीं जिसके लिए देर रात को कोर्ट खुलती है. कोर्ट इसे जेल में भेजने के स्थान पर इन्हें घर पर ही रखने का आदेश देते हैं. पता नहीं क्यों?
- कौन हैं इनके वकील - वृंदा ग्रोवर. यदि आपको याद हो तो 23 अगस्त को स्वामी लक्ष्मणानंद बलिदान दिवस पर एक पोस्ट की थी. उसमे एक पुस्तक के बारे में लिखा था. कंधमाल की हिंसा पर ईसाई मिशनरी द्वारा छपवाई गई पुस्तक Kandhamal: Introspection of Initiative for Justice 2007-2015 की लेखिका थी यही वृन्दा ग्रोवर. कहने का अर्थ यह है कि जहाँ भी हिन्दू विरोधी कार्य होता है वहां वृंदा ग्रोवर जरुर पाई जाती है.कुख्यात लेखिका वृन्दा ग्रोवर के बारे में समझने के लिए कुछ उदाहरण देता हूँ.
इन वृन्दा ग्रोवर ने साल 2001 में संसद में हुए हमले के एक आरोपी एस.ए.आर गिलानी को बतौर सलाहकार अपनी सेवाएं दी हैं. वृंदा ग्रोवर ने 2004 इशरत जहाँ केस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जहाँ भी हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी साजिश हो वहां ये अपनी उपस्थिति जरुर दर्ज करवाती हैं. इनका मानना है कि दंगा केवल हिन्दू ही करता है और पीड़ित केवल मुस्लिम/ इसाई/ कम्युनिस्ट या नक्सली ही होता है. इतने से आप अनुमान लगा सकते हैं इनकी हिन्दूद्वेषी मानसिकता का. वृंदा ग्रोवर. यही वृन्दा ग्रोवर. कहने का अर्थ यह है कि जहाँ भी हिन्दू विरोधी कार्य होता है वहां वृंदा ग्रोवर जरुर पाई जाती है. 27 अक्तूबर 2018 को प्रधानमन्त्री की हत्या की साजिश व भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोप में फरीदाबाद से सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया गया. सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी के तत्काल बाद देर रात को ही हरियाणा पंजाब उच्च न्यायालय के न्यायधीश के घर में कोर्ट बनाकर सुनवाई हुई. ध्यान रखें ये सुधा भारद्वाज मानवधिकार कार्यकर्ता है कोई प्रधानमन्त्री नहीं जिसके लिए देर रात को कोर्ट खुलती है. कोर्ट इसे जेल में भेजने के स्थान पर इन्हें घर पर ही रखने का आदेश देते हैं. यही वृंदा ग्रोवर अर्बन नक्सली सुधा भारद्वाज की भी वकील है. इस उदाहरण से आपको अनुमान हो गया होगा कि इस तन्त्र की जड़ें कितनी गहरी हैं. यही वृन्दा ग्रोवर सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण अधिनियम का प्रारूप बनाने वाली समिति में शामिल थी.
जेएनयू का कुख्यात नारा 'भारत तेरे टुकड़े होंगे।' नक्सली भारतीय गणतंत्र और इसके 'बुजरुआ संविधान' को नष्ट कर माओवादी चीन के मॉडल पर कम्युनिस्ट राज्य की स्थापना करना चाहते हैं। नक्सली 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय 'चीन का चेयरमैन हमारा चेयरमैन है' का नारा देने वालों की ही जमात हैं। चूंकि उनकी नजर में भारत में कम्युनिस्ट राज्य की स्थापना में सबसे बड़ा बाधक एकीकृत भारतीय राज्य है इसलिए वे सबसे पहले उसे ही छिन्न-भिन्न करना चाहते हैं। दशकों के सशस्त्र संघर्ष और आतंक के बाद नक्सली इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि एकीकृत भारत को परास्त करना असंभव है। वे इस निष्कर्ष पर इसलिए पहुंच गए हैं, क्योंकि उन्हें यह दिख रहा है कि भारतीय सेना के उनके खिलाफ उतरने के पहले ही उनकी हालत पस्त हो रही है। अब वे भारत के विघटन की फिराक में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि नेपाल की तरह छोटे-छोटे राज्यों पर कब्जा करना आसान होगा। नक्सली और वामपंथी सैद्धांतिक तौर पर भारत को एक कृत्रिम राष्ट्र मानते हैं।
उनकी यह भी समझ है कि भारत एक दमनकारी साम्राज्यवादी संरचना है जिसने उपमहाद्वीप की विभिन्न राष्ट्रीयताओं पर कब्जा कर रखा है। उनके अनुसार भारत का अस्तित्व ही समस्या की जड़ है और यहां की जनता को गरीबी, भुखमरी और अन्याय से आजादी भारत को राष्ट्र और राज्य के रूप में नष्ट किए बिना नहीं मिल सकती। यही मौलिक वामपंथी लाइन है और इसी कारण वामपंथियों ने आजादी के पहले न केवल पाकिस्तान बनाए जाने का समर्थन किया था, बल्कि भारत को करीब 30 और हिस्सों में बाटने की वकालत भी की थी। यही कैडर शहरी नक्सली है। इनके मुख्य काम हैं अपने हथियारबंद साथियों को पैसा एवं संदेश पहुंचाना, शहरों में उनके लिए सुरक्षित ठिकाने तैयार करना और गिरफ्तार नक्सलियों को मानवाधिकार और कानून की दुहाई देकर बचाना। इसके अलावा शहरी नक्सली अपने एजेंडे का प्रचार-प्रसार भी करते हैं।
एक चलते हुए कारखाने को कैसे बंद करना है, एक सुरक्षित देश में कैसे सेंध लगानी है, अच्छे खासे युवा के दिमाग में कैसे देशद्रोही का बीज बोना है, किसी सिस्टम के सताए मजबूर इंसान को कैसे राष्ट्रविरोधी नक्सली बनाना है.. यह सब कम्युनिस्टों की विचारधारा है। अगर कोई गरीब मजदूर, जो किसी ठेकेदार या किसी पुलिस वाले का सताया हो, उसको यह कहकर भड़काना, कि पूरी सरकार तुम्हारी दुश्मन है, इन्हें मारो और अपना खुद का राज्य बनाओ। तुम्हें हथियार में दूंगा। यह आदमी कम्युनिस्ट है..अगर कोई आपके पुरखों के वैभव और शानदार इतिहास को छुपाकर आपको यह बताए, समझाए और पढ़ाए कि दूसरे देश तुम से बेहतर हैं, तुम कुछ भी नहीं हो, यह हीन भावना जगाने वाला आदमी कम्युनिस्ट है.
बंगाल में धर्म रहित कम्यूनिस्ट विचारधारा की सरकार के 35 साल
सोनागाछी (कोलकाता } स्लम भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड-लाइट एरिया है। यहां कई गैंग हैं जो इस देह-व्यापार के धंधे को चलाते हैं। इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की कई हज़ार लड़कियां देह व्यापार में शामिल हैं। उन्हें बचपन से ही वो सब देखना पड़ता है जिसके बारे में सोचने पर हमारी रुह कांप जाए। ये काम इतना बुरा है कि इसमें मजबूरन पड़ने वाली लड़कियों के लिए बदनसीब शब्द भी बहुत हल्का है।
जिस उम्र में हमारी मां हमें दुनिया के रीति-रिवाज, लाज-शरम सिखाती हैं वहीं ये बच्चियां खुद को बेचने का हुनर सीखती हैं। 12 से 17 साल की उम्र में ये लड़कियां सीख जाती हैं कि मर्दों की हवस कैसे मिटाई जाती है। इसके बदले उन्हें 300 रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की बच्चियां मर्दों की टेबल पर तश्तरी में खाने की तरह परोस दी जाती हैं।
चिड़ियाघर में पिंजरे में कैद जानवरों की हालत से भी बदतर हालत होती है सोनागाछी में इन छोटे छोटे दडबे जैसे पिंजरों में कैद लड़कियों की बक़ायदा नुमायश होती है ताकि सडक पर आते जाते लोग उनकी अदाओं के जाल में फंस जाए। अपने अपने कोठे या कमरे के बाहर खडी होकर ये बदनसीब औरतें और लड़कियां अपने जिस्म नोचने वालों को रिझाती नज़र आती है। सडक पर बिकने वाले मुर्गे और बकरों की तरह सोनागाछी में इंसानों का बाज़ार लगता है।पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी ये लोग भीतर नहीं आने देते .ज्यादातर बच्चियां स्कूल छोड़कर आई हैं और अब देह बेचने का पाठ पढ़ रही है.कुछ NGO का अध्ययन कहते हैं कि इन 35 सालों में सोनागाछी में देह-व्यापार में आने वाली लड़कियों की संख्या 10 गुणा हो गई है.
कितने मानवाधिकार वाले बोले इस देह-व्यापार पर