||दुर्मिल सवैया ||
लय में चिर गीत विधान बसा , प्रिय प्रेम वियोग समीर चले!
मधु में नव स्वप्न पराग घुला , करुणा धन नीर दिगंत पले !
पल में मृदु झंकृत राग नया , उलझा रस धार हिमांशु गले !
गुरु सूत्र पुकार रहा उर में, भव बंधन पीर अनंत टले !!
मन मोहित राग अधीर रहा , उर में मकरंद निहार जरा !
हर दौड़ नवीन उछाह भरी , तन तृप्ति निमित्त प्रयास धरा !
अभिशाप यही उदभ्रांत दशा, निज काम समर्पित स्वप्न भरा !
भटकाव दिगंत निढ़ाल हुआ, गुरु छाँव विशाल विकार हरा !!