अरब किस तरह मुसलमान हुआ
खुद हजरत मुहम्मद के जमाने में अरब वालो से मुफ्फसिल जैल मशहूर लडाई हुई है । जिनमें हजारों लाखों आदमी तलवार से क़त्ल हुए। सैंकडों स्त्रियाँ लौंडिया बनाई गई। और हजारों ऊंट बकरी लूटे गये । हजारों के घर तबाह हुए और जब लूट से काफी पूंजी जमा हो गई तो फिर इनाम इकराम मिलने लगे । माल मुफ्त दिले बे रहम पर अमल दरामद किया गया – जो साथ शरीक होजाता वह गरीब चरबाहों के हक में गोया भेडिया होजाता था । हम इस मौके पर मुफ्फसिल हालात लिख़ने से पहिले अरब के एक मशहूर और मारूफ़ आदमी अबूसुफियान के मुसलमान होने का हाल दर्ज करते हैं ।
जब मुहम्मद ने मक्के की फतह करने पर फौजे तय्यार की तो अव्वाल और अबूसुफियान जो निष्पक्ष थे घूमते हुए आपस से मिले । अब्बास ने अबूसुफियान से कहा कि अब क्या मारे जाओगे उसने मारे जाने के बचने का उपाय पूछा । अव्वाल उसको इस्लाम से लाने के बहाने निर्भय कर देने का वादा करके मुहम्मद के पास लेगया । हजरत उमर मारने के वास्ते दौड़े । रात को उसको हवालात में रखा सुबह को हाजिर लाया । मुहम्मद साहब ने कहा कि अबतक वह समय नहीं आया कि तू कहे कि खुदा एक है और उसका कोई साक्षी नहीं और उसके सिवाय कोई पूजित नहीं । और मैं सच्चा नबी (पैगम्बर) हूँ अबूसुफियान ने कहा कि मेरे माँ बाप आप के भक्त हैं । सब बडाई और बुजुर्गी आपही की है । उन गुस्ताखियों और बेअदबियों के बदले जो मुझसे हुई आप की यह कृपा मुझ पर है । वास्तव में एक खुदा के सिवाय कोई पूजित नहीं। परन्तु पैगम्बर की सत्यता पर मौन धारण किया अब्बास ने कहा की पैगम्बर की सत्यता पर भाषण कर नहीं तो खैर नहीं। अबूसुफ़ियान ने मजबूर होकर पैगम्बर की सच्चाई मानी और इस्लाम ग्रहण किया। तब अब्बास ने नबी की सेवा में अर्ज किया की हे अल्लाह के पैगम्बर अबूसुफ़ियान पद और मान को अच्छा समझता है। उसको कोई पदाधिकार दीजिये ताकि उसका मान हो। मुहम्मद ने उसको इस आज्ञा से से मान दिया की जो कोई अबूसुफ़ियान के घर में दाखिल हो उसकी जान बख्शी जावे। निदान वह छुट्टी लेकर मक्के को गया – अब्बास उचित अवसर पाकर पैगम्बर की सम्मति से अबूसुफियसान के पीछे गया, वह डरा अब्बासने कहा डरमत । सारांश यह कि अब्बास ने अबूसुफियान को रास्ते के किनारे पर खड़ा किया ताकि सब लश्कर इसलाम को देखले और उस पर रोब होजावे ताकि वह फिर इस्लाम से न फिरे । जब कि इस्लाम की फौज अबूसुफियान के सामने से निकल गई लोगों ने कहा जल्द जा और कुरैश को डर दिलाकर ओर समझाकर इस्लाम को घेरे में ला ताकि जीवन मोत से निर्भय होजावे अबूसुफियान जल्द उनकी जान मारे जाने से बचा सके, (देखो तारीख अम्बिया सफा ३५४ व ३५५ सन् १२८१ हिजरी और ऐसा ही जिक्र किताब सीरतुल रुस्ल व त्तफसींर हुसैनी जिल्द १ सूरे तोबा सफा ३६० में है)
जिस कदर खूंरेजी और लूटमार से अरब के लोग मुसलमान हुए है अगर उनकी मुफ्फसिल फिहरिस्त लिखी जावे तो एक दफ्तर बनजावे । हालत पर लक्ष करते हुए संक्षेप से वर्णन करते हैं ।
(1) गज़वा (लडाई) वदां।
(2) गजबये बवात ।
(3) गजवतुल अशरह
(4) गजबये बदर ऊला ।
(5) जंगे बदर ।
(6) गजब तुल कदर
(7) गजय तुल अन्सार
(8) गज़वा वाजान
(9) गज़वा सौवक
(10) गज़वा अहद
(11) गज़वा हमराउल असद
(12) गजबा जातुर्रिका
(13) गज़वा बदरुल मुअद
(14) गज़वा दौमतुल जन्दल
(15) गज़्वावनी मुस्तलिक
(16) गज़वा बनी नजीर
(17) गज़वा खन्दक
(18) गज़वा बनू तिबियान
(19) गजबाजूकुरह
(20) गज़वा फतह मक्का
(21) गज़वा हबाजन
(22) गज़वा औतास
(23) गज़वा ताइफ़
(24) गज़वा बनीकीका
(25) गज़वा बनिनुफैर
(26) गज़वा वनी करैता
(27) ग़ज़वे तलूक ।
इन ले 27 मशहूर ग़ज़वाता (लड़ाइयों) के सिवाय और बहुत से हमले और जंग हुए हैं जिनकी कुल तादाद 81 के करीब पहुंचती है इस किस्म के सैकडों मुकाबिले और लड़ाइयो के बाद जान के लाले पड़ जाने के डरसे डरपोक देहाती मुसलमान बन गये और जोर वाले बहादुर शेर दिल देहाती जैसे अब्दुल हुकम ईश्वरीय कृपापात्र वगेरह शहीद डोगये । हिसारे की कोम सकी जंग में लिखा है कि हजरत अली ने मुहम्मद से पूछा कि कब तक कत्ल से हाथ न उठाऊं मुहम्मद ने कहा जब तक यह न कहे कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका पैगम्बर है तकतक क़त्ल कर (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४६ सतर १५ या १६ सन् १८८१ हिजरी)
गजबा वनी कुरेता की बाबत लिखा है कि साद विन मआज ने पैगम्बर को कहा कि इस बदजात कोम यहूदी का किस्सा तमाम करो गर्ज कि लड़ने लायक आदमी मारे गये और बाकी कैद गये चुनांचे कई सौ आदमी कुरैती मदीने से लाकर क़त्ल किये गये । (देखो मौलवी नूरुद्दीन साहब की फसलुल खिताब सफा १५९)
सुलह फुदक की बावत लिखा है कि नुहेफा विन मसऊद खुदा की हिदायत के बमूजिब सुलह फुदक तशरीफ ले गये और उस कौम को इस्लाम फेंलाने का पैगाम देकर जहाद का पैगाम दिया – मगर उन्होंने न सुलह का पैगाम दिया और न लड़ने को बाहर मैदान में निकले । (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४७ सन् १२८१ हिजरी)
मुहम्मद साहब के मरने के बाद जो बहस हजरत अबू बकर की खिलाफत से पहिले सादविन उवादा बडे आदमियों में से था) सैंकडों मुसलमानों के सामने की है। उससे सारा हाल अरब के इस्लाम में लाने का जाहिर होता है । जैसा कि लिखा है सादबिन उबादा ने क्रोधातुर होकर कहा कि है अन्सार का गरोह तुम सब कपटी हो कि तुमको इस्लाम के सब गरोहों पर मान है। क्योंकि मुहम्मदी अपनी कौम बाद दश वर्ष के जियादा रहा । और सबसे मदद चाहीं और दीन को जाहिर करता रहा – मगर सिवाय चन्द आदमियों के किसी ने ध्यान नहीं दिया और कोई उस मुसीबत के समय साथी न हुआ – मगर थोडे दिन मदीने से रहने से और हमारे कष्ट उठाने से खुदा को यह कृपा हुई कि दीन इस्लाम को वह तरवकी हुई जो तुम देखते हो ।
पस खुलासा बात यह है कि तुम्हारे कष्ट से सिवाय इस के और क्या नतीजा होगा कि अब बड़े-बड़े रईस इस्लाम मुहम्मद में दाखिल हैं । खिलाफत के काम ओर रियासत तुम्हारे कब्जे में रहनी चाहिये । सब अंसार ने कहा कि हे साद सच है जो तुमने कहा तेरे सिवाय अंसार में कोई बडा नहीं । हमने तुझको अपना सर्दार बनाया और तुमसे बरैयत (प्रतिक्षा) करते है तुझसे जियादा अच्छा खिलाफ़त का काम बजाने वाना कोई नहीं है अगर मुहाजिर (पुजारी) इस बारे से कुछ विरोध करेंगे तो हम उनसे कहैगे कि अच्छा अमीरी तुम्हारे ही खान्दान में सही और हमारे खान्दान में भी सही । (देखो तारीख अम्बिया सका ३७४ सन् १२९१ हिजरी)
मुहम्मद साहब ने लोगों से वादा किया था कि कैंसर और किसरा के खजाने बजरिये गनीमत तुम्हारे हिस्से में आवेंगे मुसलमान होजाओ । पस लोग इसी नियत से मुसलमान हुए थे जैसा कि अक्सर मर्तवा उस समय के मुसलमान इन्कार करते और परेशान होते रहे (देखो मुफ्फसिल तारीख अम्बिया सफा ३२४ सन् १२८१ हिजरी ।)
गजवये बदर कुब्रा में साद वगेरह मुसलमानों ने मुहम्मद साहिब को यह रायह दी कि तेरे लिये एक सुरक्षित तख्त की जगह अलग मुकर्रर कर ओर जरूरी असबाब उसमें रखदे ओर फिर काम में लगें । अगर हम जीते तो पहिली सूरत में अपनी जगह सवार होकर मदीने में जावें । हजरतने साद की राय पसंद की और भलाई की दुआ दी और नकबख्त आदमियों की राय के मुताबिक त्ततींबवार अमन करने में लग गये और आनन फानन में त्ततींब की नींव डाली (देखो तारीख अम्बिया सफा ३०५ सन् १२८१ हिजरी देहली)
गनीमत के माल बांटते पर हमेशा झगड़ेही रहते थे ओर इसी लूट के माल की खातिर पहिले लोग मुसलमान हुए थे और इसी की तर्गीब से मुतलिफ वक्तो से मुसलमान होते रहे । (देखो सफा ३१० तारीख अम्बिया ।)
हिजरी की दोम साल में निरपराधो यहूदियों का माल व असबाब लूटा और उनको मदीने से निकाल दिया । चुनाँचि लिखा है कि तमाम माल व असबाब बुरे काम करने बालों का मुसलमानो के हाथ जाया और पांचवा हिस्सा कायदे के बमूजिब निकाल कर बाकि बट गया (देखो सका ३१२ तारीख अम्बिया ।)
साल सोयम हिजरी से कावबिन अशरफ सब उत्तम शायर को सिर्फ कुरेश का शायर होने के कारण हजरत मुहम्मद साहब ने एक हीला सोचकर अयुवनामला मुसल्लिमा वगेरह के हाथों से क़त्ल करवा दिया और पैगम्बर पर जान न्योछावर करने बालों ने अयवूराफे विन अविल हकीक को बेगुनाह क़त्ल कर डाला । देखो सफा २१३ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी ।)
जंग अहद के जिक्र में लिखा है कि जनाब पैगम्बर की निगाह व हिफाजत में महाजिर (पुजारी) इन्सार ने बडी कोशिश की इस लडाई में कुरैशियों ने इत्तिफाक किया था इसमें अक्सर पैगम्बर के साथी व चार महाजिर (पुजारी) और ६६ अंसार लडाई के मैदान से मारे गये मुहम्मद साहिब गड्रढे में गिर पड़े । पांव से चोट आयी – कम्प जारी हो गया – बडी कठिनता से तलहाने गड्रढे से नीचे उतर कर कंधे पर चढाया और अली ने आहिस्ता आहिस्ता हाथ पकड़ कर बाहर को खींचा और जिस बक्त मुहम्मद बाहर निकले तो दुखित देखा । दांत टूटे हुए पाये जख्मो से खून जारी था आम खबर फ़ैल गई थी कि मुहम्मद साहब मारे गये … अमीर हमजा वगेरह मारे गये कुरैश की औरतों ने उनके नाक कान काट लिये – सफा ३१६ व ३१७ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी में
अगर खुदा करता कि यह जरासीं और हिम्मत कर जाती तो मुहम्मदी इस्लाम का नाम व निशान न रहता। मगर अफ़सोस कि सुस्ती की-बुद्धिमानों ने सच कहा है “कार इमरोज़ व फर्द मफगन” (आज का काम कल पर मत छोडो)। हजरत के मरने पर बडा विरोध और ईर्ष्या व झगडा सब अरब में फ़ैल गया हर एक गिरोह रियासत चाहता था और दूसरे का विरोधी (देखो तारीख अम्बिया सफा ३७१ से ३७४ तक)
रिसाले मुअजजात में लिखा है कि हज़रन के मरने के बाद अरब के बहुत से कबीले फिर गये ।
सूरे मायदा :- ' 'या अय्योहल्लजीना आमनूं मई यरतद्दा मिन्कम अन्दोनही फसोफा यातिल्लाहो बिकौमिन युहिब्बहुम बयोहिब्बूनहू अजिल्लतुम अलल मोमिना अइज्जतुन अलल काफिरीना व उजाहिदूना की सवी लिल्लाह !”
अर्थ :- हे मुसलमानों जो तुम अपने दीन से फिर गये एक कोम अल्लाह की तरफ से क़रीब आवेगी कि तुम उनको दोस्त रक्खोगे ओर बह काफिरों पर जहाद करेंगे अल्लाह के लिये ।
ओर अबूउबैदा सही किताबों में लिखता है कि जिस वक़्त मोहम्मद के मौत की खबर मक्के में पहुंची अक्सर मक्का के लोगों ने चाहा कि मुहम्मदी इस्लाम से अलग होजावें चुनाँचि मक्का के अमलाबाले कई दिनों तक डर के मारे घर से बाहर नहीं निकले – मुहम्मद के मरने पर जो लोग इस्लाम से फिर गये वह भी तलवार से जीते गये। अन्त से फिसाद बढ़ते बढ़ते यहाँ तक नौबत पहुंची कि अली खलीफा के वक़्त में तल्लाह ओर जुबैर और आयशा मुहम्मद साहिब की बीबी और माविया का शाम के मुल्क की तरफ हजरत अली और दूसरे मुसलमानों के साथ लडाई हुई बीबी आइशा ने तलहा के बढावे की सलाह ओर मुहब्बत से लडाई की । शाम के सब मुसलमान अली के मारने पर तय्यार थे जिसमें हजरत अली मय एक लाख साठ हजार फ़ौज के और हजरत माबिया वगैरह भी मय बहुत सी फौज के फरात नदी के किनारे पर लडाई लड़ने आये ६ माह लडाई होती रही ७००० आदमी अली के तरफ़ के और १२००० माबिया की तरफ़ से मुसलमान हताहत हुए। माबिया ने सुलह (सन्धि) का पैगाम भेजा – अलीने अस्वीकार किया लडाई हुई इसमें ३६००० और भी मारे गये अन्त में २२६००० मुसलमानों के मारे जाने के बाद सुलह हुई । इब्न मुलहम मिश्र के रहने वाले मोमिन (ईमानबाले) ने बड़े प्रेम से एक औरत के निकाह के बदले अली को मारडाला । उस कुतामा नाम ईमानदार औरत ने अपने मिहर में अली का क़त्ल लिखवाया था । इस तरह अरब में इस्लाम बढ़ा और घट गया (देखो तारीख अम्बिया सफा ४४५ व ४४६ सन् १८८१ हिज्र देहली।)
यह माविया अली के जंग की अग्नि बहुत काल तक प्रज्वलित रही और इसी का अन्तिम परिणाम यह था कि अली के लड़कों हसैन व हुसेन का यजीद माविया के लड़के के साथ इमाम होने का झगडा हुआ और असंख्य मुसलमान दोनों तरफ के क़त्ल हुए (देखो जांगनामा हामिद।)
जो लोग मुस्लमान होते थे उनको माल व संतान वापस मिलता था। क़त्ल से बच जाते थे इस वास्ते अक्सर कबीला अरब जब लड़ते लड़ते और खून की नदिया बहाते बहाते तंग आ गए मजबूरन मुस्लमान हो गए चुनाँचि गज़वा तायफ़ में लिखा है बाद फतह के एक गिरोह हवाज़न (हवा उड़ाने वालो) ने इस्लाम क़बूल किया और आपने उनकी जायदाद और संतान को वापिस दिया फिर मालिक विन अताफ जो हुनैन के काफिरो की फ़ौज का सरदार था विवश होकर मुस्लमान हुआ और इसका माल व संतान वापिस दी गयी। (देखो तारिख अम्बिया सफा ३६० सन १२८१ हिजरी)
नवी साल के जिक्र में लिखा है की गिरोह गिरोह अरब के कबीले शौकत व इस्लाम की तरक्की देखकर मुस्लमान हो गए यहाँ तक की नाम इस साल का “सनतुल वफूद” वफ़ादारी का साल कहते हैं (देखो सफा ३६१ तारिख अम्बिया १२८१ हिजरी)
फिर लिखा है कि मुसलमानो को जीत पर जीत होने से आस पास के मुशरिक लोग दिक्कते व परेशानी उठाने के बाद इस्लाम की शरणागत हुए और काफिरपन भूल गए। (तारिख अम्बिया सफा ३८९ व ३६०)
अरब में गुलामी का आम दस्तूर अब तक मौजूद है। और वह हज़रत के वक़्त से जारी है। लौंडी और गुलाम जिस तरह मक्का में भेजे जाते हैं और ख्वाजा सराय बनाये जाते हैं और मक्का मौज़मा और मदीना मनव्वर बल्कि रोज़ह मुतहरह पर ख्वाजा सरायो का यकीन है। निहायत अफ़सोस के काबिल है और फिर कहा जाता है की दीन इस्लाम में जबर करना जायज़ नहीं।
एक योग्य और प्रतिष्ठित इतिहास लेखक लिखता है की अरब वाले नूह की संतान नहीं है बल्कि कृष्ण लड़के शाम की संतान में से हैं और इसी वास्ते वह शामी कहलाते हैं द्वारिका से ख़ारिज हो जाने के बाद शाम जी अरब मय (साथ) अपने सम्बन्धियों व सेवको के आ गए और उसी रोज़ से अरब आबाद हुआ वर्ना इससे पहिले वहाँ आबादी नहीं थी और अरब शब्द संस्कृत का है (यानि आर्यावः) यानी आर्यो का रास्ता मुल्क मिश्र को आर्यो की यात्रा का रास्ता और अरब का अंग्रेजी नाम अरेबिया को देखने से यह बात समझ में आजाती है। पस दरहक़ीक़त अरब के लोग शाम जी कृष्ण के बेटे की संतान में हैं।
साभार –
गौरव गिरी पंडित लेखराम जी की अमर रचनाओ में से एक पुस्तक
जिहाद – कुरआन व इस्लामी ख़ूँख़ारी
बिलकुल जिस प्रकार लेखराम जी लिख कर गए हैं उसी प्रकार लिखा गया ताकि समस्त मानव जाती इस्लाम का सच जान सके।