भजन कविता
सब के गुण , अपनी हमेशा गलतियाँ देखा करो |
जिन्दगी की हुबहू तुम झलकियाँ देखा करो ||
हसरतें महलों की तुमको गर सताएं आनकर |
कुछ गरीबों की भी जाकार बस्तियां देखा करो ||
खाने से पहले अगर तुम हक़ पराया सोच लो |
कितने भूखों की है इन में रोटियां देखा करो ||
आ दबोचें, गर कहीं तुम को सिकंदर सा गरूर |
हाथ खाली आते जाते अर्थियां देखा करो ||
ये जवानी की अकाद सब ख़ाक में मिलाजावेगी |
जल चुके जो शव हैं उनकी अस्थियाँ देखा करो ||
जिंदगी में चाहते हो सुख अगर अपने लिए दूसरों के गम में अपनी सिसकियाँ देखा करो |
मिलाजावेगी जल चुके जो शव हैं उनकी अस्थियाँ देखा करो ||
जिंदगी में चाहते हो सुख अगर अपने लिए ,
दूसरों के गम में अपनी सिसकियाँ देखा करो ||