भोली-भाली और चतुर दुनियां

भोली-भाली और चतुर दुनियां



      एक ओर तो दुनियां बड़ी भोली-भाली है, दूसरी तरफ बड़ी चतुर है । बड़े-बड़े पढ़े-लिखे और धनी पुरुष माताएं-देवियां साधु-महात्माओं के पास आकर पूछते हैं-महाराज हमारा मन नहीं लगता । युक्ति बतलाओवे केवल भेष देखकर यह विश्वास करते हैं कि इनका मन तो बस टिका हुआ ही है। कितना भोलापन है ? परन्तु वे ही अपनी जिह्वा और बुद्धि से दूसरों को अपना वशवर्ती बना लेते हैं । और अपनी प्रशंसा कराते हैं । जिसने विषय-वासनाओं पर वश नहीं पाया वह कैसे स्थिर मन हो सकता है ?


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