ध्यान से मिलता है भगवान 


ध्यान से मिलता है भगवान 




भूख से तड़प रहा इन्सान,


तू पूजे पत्थर का भगवान।


गरीबों में बसता है ईश,


अरे, तू क्यों होता हैरान?


 


लुटाकर लाखों रुपये व्यर्थ,


बनाया मन्दिर एक विशाल।


न दीनों का है कोई याल,


बन गए वे सारे कंगाल।


नहीं पत्थर में है भगवान,


अरे, वह खुद ही है इन्सान।


 


खा रहा लोभी ब्राह्मण खूब,


नहीं छोड़े मुर्दे का माल।


गपोड़ों के बल पर ही आज


बन गया देखो मालामाल।


बाँचता रहता रोज पुराण,


कथाओं की है जिसमें खान।


 


वेद है सत्य, ओम् है ब्रहम,


ज्ञान की गंगा निर्मल धार।


खोल पट अन्दर के ऐ मूर्ख!


चढ़ेगा तुझ पर तभी खुमार।


मंत्र ऋषि दयानन्द का जान,


ध्यान से मिलता है भगवान।



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