दुई में भय
दुई में भय
जो शिशु माता की गोद में है-जब उसे कोई डराता है, या किसी से वह डर जाता है तो मुंह फेरकर माता की ओर कर लेता है, और माता उसे छाती से लगा लेती है। पर फिर भी शिशु मां के साथ लगे रहने पर भी मन में डरता है। परन्तु जो बालक माता के गर्भ में अन्दर छिपा हुआ है--वह किसी से भी नहीं डरता । न कोई शक्ति उसे डरा सकती है। जब तक थोड़ा भी अन्तर है-तब तक भय लगा ही रहता है, यद्यपि उसकी रक्षा होजाती है और उसे भी विश्वास और निश्चय होता है--पर अन्तर के कारण भय रहता है। ऐसे ही जो प्रभुभक्त जो प्रभु के समर्पण होचुका है-प्रभु में समा गया है-उसे तो कोई भी संसार की शक्ति भयभीत कर ही नहीं सकती। और जो भक्त कुछ अपना भी अपनापन रखता है-उसे जब कोई डराता है-या वह डर जाता है-तो वह भी प्रभु की और मुख कर लेता है । अर्थात् उसके भजन (शरण) मैं बैठ जाता है। उसकी रक्षा अवश्य होजाती है पर मन में वह थोड़ा डर बनाए रखता है।