ईश्वर की उपासना
ईश्वर की उपासना
ईश्वर की उपासना मिथ्या विश्वास पर नहीं अपितु सत्य पर आधारित होने चाहिए। यदि कोई नमक की डली को चीनी समझने लगे तो वह चीनी नहीं बन जाएगी। मनुष्य असत्य कल्पना करे तो वह यथार्थ नहीं अपितु भ्रम कहलायेगा। मूर्ति पूजा का समर्थन करने वाले हिन्दू कब श्री राम और श्री कृष्ण को छोड़कर मुसलमानों की कब्रों में ईश्वर को खोजने लग गए मालूम ही नहीं चला। ऐसे ही साईं बाबा को भी भगवान बताने लगे मालूम ही नहीं चला। असत्य को सत्य समझने का यही दुष्प्रभाव है। हिन्दू समाज अगर वेद विदित सत्य को समझ जाये कि ईश्वर निराकार है और सभी की आत्मा में उसका वास है और उनकी पूजा करने के लिए किसी मूर्ति वा मजार की आवश्यकता नहीं है तो एक दिन में संगठित हो जाये। खेद है कि आठ सौ सालों तक मुसलमानों की मार खाने के पश्चात भी हिंदुओं को यह समझ नहीं आया कि उनकी बीमारी क्या है !!