ह्रदय मैं अपने आग लिए थे
ह्रदय मैं अपने आग लिए थे
ह्रदय मैं अपने आग लिए थे।
विद्यादान का काम किए थे ।।
ऐसे लोग होते हैं चंद।
जैसे थे स्वामी विरजानंद ।।
जिन्होंने ऐसा पाठ पढ़ाया।
दयानंद सा शिष्य बनाया।।
जिसने गाली पत्थर ईटे खाई ।
पर सत्य की अलख जगाई ।।
लक्ष्य एक ही उन्होंने साधा ।
जो गुरु से किया था वादा ।।
अंधकार को दूर भगाया ।
ज्ञान वेद का सबको बताया।।
अपाहिज हो रे समाज को।
नवजीवन प्रदान कर डाला ।।
पाखंडों की बेड़ी तोड़ी।
तोड़ी जंजाल ओं की माला।।
जब शास्त्रार्थ समर में उतरे।
वेद शास्त्र का दिया हवाला ।
जो अच्छे-अच्छे दिग्गज हारे ।।
मुंह पर लग गया उनके ताला ।।
ऐसी सुंदर बात बताई ।
ईश्वर पुत्र सब भाई भाई ।।
नहीं जन्मे से जात पात है ।
कर्म किए से ही भांत भांत है।।
ईश्वर को है सभी प्यारे ।।
वेद पढ़ा कर सबको तारे ।।
जिस को तरस रहे थे सज्जन।
अबला नारी और शुद्र बेचारे।।
सत्यार्थ प्रकाश की करके रचना।
सिखा गए पाखंड से बचना।।
संस्कार विधि की रचना कर।
सिखा गये संस्कार सिखाना।।
गो करुणानिधि की सीख से ।
गौ रक्षक गोपाल बनाया ।।
ऐसे गुरु का पाकर ज्ञान ।
जीवन सबने धन्य बनाया ।।
जग उपकार माने सब आज।
जो बना दिया है आर्य समाज।।
तुम्हें नमन सौ सौ बार गुरुवर ।
मेरे पूज्य दयानंद ऋषि राज ।।