जीवन का अद्भुत चक्र
06/12/2019🌞ओ३म्🌞🙏🏻🙏🏻अओआ🙏🏻
जब बच्चे का जन्म होता है, तो जन्म होते ही वह रोना शुरु करता है। बिल्कुल अशक्त असमर्थ अज्ञानी वह बालक अपना कुछ भी कार्य करने में समर्थ नहीं है। नहाना धोना लेटना बैठना दूध पिलाना आदि आदि, उसका सब कुछ उसकी मां ही करती है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसको बैठना उठना चलना फिरना बोलना खाना-पीना खेलना कूदना इत्यादि, धीरे-धीरे सब कुछ सिखाया जाता है। दूसरों के साथ लेन देन करना, समाचार देना लेना इत्यादि सब प्रकार के व्यवहार उस बच्चे को सिखाए जाते हैं। कुछ और बड़ा होने पर उसे स्कूल भेजा जाता है। फिर पढ़ाई का बोझ, परीक्षाएं, और हर रोज स्कूल जाना, ट्यूशन पढ़ना प्रतियोगिताएँ करना इत्यादि ।
अनेक कष्ट उठाकर जैसे तैसे स्कूल पास करने के बाद कॉलेज में प्रवेश नहीं मिलता। बहुत कठिनाई से मिलता है। कॉलेज वालों आदि को कुछ दान भी देना पड़ता है। कहीं सिफारिश भी लगवानी पड़ती है। तब जाकर बहुत मुश्किल से प्रवेश मिलता है।
उसके बाद मेडिकल इंजीनियरिंग आदि की कठिन पढ़ाई करना। अनेक वर्ष मेहनत करने के बाद डिग्री मिलने पर नौकरी नहीं मिलती, बहुत भटकना पड़ता है। फिर नौकरी भी मिल जाए, तो प्रतिदिन कार्यालय में जाना, कार्य करना।
उसके बाद विवाह करना भी बहुत कठिन है। विवाह के लिए योग्य पात्र नहीं मिलता। जैसे तैसे पात्र मिल भी जाए, तो उसके साथ कुछ समय बाद विचारभेद लड़ाई झगड़ा टकराव उत्पन्न होने से अनेक दुख भोगने पड़ते हैं। फिर बच्चों का जन्म होने पर उनके पालन पोषण की जिम्मेदारी आ जाती है। उसमें भी बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं।
वर्षों तक धन कमा कमाकर, घर परिवार का संचालन, पालन पोषण करना। बीच-बीच में अनेक बार रोगी होकर कष्ट उठाना। स्वयं भी व्यक्ति रोगी होता है और उसके परिवार के सदस्य भी रोगी होते रहते हैं.
50/60 वर्ष तक खूब मेहनत करने के बाद सेवानिवृत्त होने पर, उसे कुछ थोड़ी शांति मिलती है, कि अब सब कुछ व्यवस्थित हो गया है। बच्चे भी बड़े हो गए हैं, और घर मकान मोटर गाड़ी आदि सब सुविधाएं भी बन गई हैं।
सेवानिवृत्त होने के बाद अब कुछ सुख भोगने के, विश्राम करने के दिन आए हैं। परंतु अब शरीर में शक्ति नहीं रही। बुद्धि तो अच्छी विकसित हो गई, जीवन जीने का ढंग तो काफी कुछ आ गया, परंतु अब शरीर साथ नहीं देता। भागने दौड़ने व्यायाम करने की इच्छा होते हुए भी व्यक्ति कुछ कर नहीं पाता, और मन मसोसकर रह जाता है।
*वर्तमान जीवन शैली का यही स्वरूप है। इस स्वरूप में जब आयु छोटी थी, तो बहुत कष्ट उठाए, सुख नहीं मिला। जब वृद्धावस्था में कुछ सुख मिलने लगा, तो आयु नाराज हो कर चली गई।*
इसलिए दुखों वाले इस चक्रव्यूह से छूटने का सबसे अच्छा और अचूक उपाय तो यही है, कि व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करे। बार बार जन्म लेना ही न पड़े। अन्यथा ये सब दुख बार बार भोगने पड़ेंगे।
और जब तक जीवन है, तब तक बचपन से ही बुद्धिमत्ता से बड़े बुजुर्गों के निर्देश का पालन करते हुए यदि व्यक्ति कार्य करे, तो शायद उसका जीवन दूसरों की तुलना में अधिक सुखमय हो सकता है। - *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*