मंझोली नाय लाओ बालम (भजन ४ )
मंझोली नाय लाओ बालम (भजन ४)
तर्ज - मंझोली नाय लाओ बालम
टेक - मदिरा पीने से बल-बुद्धि-धन का होता है नाश ।
कली - बुरा बताते हैं मदिरा को, ऋषि-मुनि-विद्वान् ।
मदिरा अन्दर, बुद्धि बाहर, आप ठीक लो जान ॥
तोड़ - मदिरा पीने वालों को सज्जन नहीं बिठाते पास ॥१॥
कली - इस मदिरा के चक्कर में जो फंस जाता इन्सान
कर देती बर्बाद उसे है सुरा नर्क की खान ॥
तोड़ - कुत्ते की मरते मौत शराबी, कहलाते बदमाश ॥२॥
कली - सड़ा हुआ पानी होता है, जिसको कहें शराब ॥
\मदिरा पीने से लाखों के जीवन हुए खराब ॥
तोड़ - वह पृथ्वीराज सा वीर बना मौहम्मद गौरी का दास ॥३॥
कली - मुगल, मराठे, वीर रजपूतों के दुनियां में थे ठाट।
मदिरा के चक्कर में फंसकर हो गए बारहबाट ॥
तोड़ - यादव पी-पी लड़ मर गए पड़ी लाश पर लाश ॥४॥
कली - अगर भलाई चाहो अपनी, रहना इससे दूर ।
नन्दलाल निर्भय की कर लो, विनति तुम मंजूर ॥
तोड़ - बन जाओ स्वामी दयानन्द, उधमसिंह, वीर सुभाष ॥५॥