नींद छोड़ दो

नींद छोड़ दो



      देश में सब कुछ है, पर 'धर्म' नहीं हैधर्म बिना सुख-शान्ति-आनन्द नहीं रह सकता है। इसलिए धर्म ही स्थापना हमारा प्रथम कर्तव्य है।


      ग्रामों में धर्म नाम के प्रति श्रद्धा है, पर धर्म का ज्ञान नहीं है। बहुसंख्यक जनता अधर्म को ही अज्ञानवश धर्म समझ रही है। जिसके परिणामस्वरूप सर्वत्र पाखण्डी, ढोंगी अपनी शक्ति बढ़ा रहे हैं।


      धर्म के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए, पर वही श्रद्धा यदि अधर्म के प्रति हो तो विनाशकारी हो जाती है। इसिलिए आज की प्रथम आवश्यकता है धर्म-अधर्म से सभी को परिचित कराने की । हमें श्रद्धा को मोड़ देना है परमात्मा के प्रति, जड़ पदार्थ से हटाकर।


      देश के लाखों ग्रामों तक अभी धर्म का सन्देश नहीं पहुंचा। बड़े-बड़े हजारों नगरों में धर्म का सन्देशवाहक कोई नहीं है। लगता है कि सर्वत्र घना अन्धकार है।


      इस अन्धकार को मिटाने के लिए आर्यसमाज स्थापित किया गया थाकिन्तु आज तो उसके अनुयायियों को गहरी नींद आ गई है। वे तन्द्रा में हैं या माया के व्यामोह में।


      ज्ञान-अज्ञान का, धर्म-अधर्म का भेद करने की शक्ति कहीं नहींजागरण शंखनाद की गूंज कहीं नहीं, सन्नाटा है चारों ओर।


      धर्म प्रचार, वेद प्रचार सब एक हैमन्दिरों में, घरों में, और सर्वत्र जब सत्य गूंजेगा, धर्म जब जीवन को संचालित करेगा, तब हम विश्व निर्माण की ओर अग्रसर होंगे।


      किन्तु........


      यह प्रश्नचिन्ह ऐसा है जिसका उत्तर किसी के भी पास नहीं है। आर्य-समाज के कर्णधारों के पास समय नहीं है। उनके मस्तिष्क में न कोई रेखाचित्र है न तड़प.......वे तो बस अपनी लकीर पीटने में लगे हैं।


      आर्य युवक कायर बन गए हैं। अधिकारी स्वार्थी हैं और जनता किंकर्तव्यविमूढ़। ऐसे में पाखण्डों की बाढ़ आना स्वाभाविक ही है। किन्तु निराश होने से तो काम नहीं चलेगा, हमें जागना होगा, विशेषकर उन्हें जो ऋषि दयानन्द की जय चाहते हैं।


      इसलिये हमारा आह्वान है-निद्रा खोलो। नींद छोड़ो और देश में धर्म का प्रचार करोग्रामों में, पिछड़े क्षेत्रों में, नगरों में, सर्वत्र अध्यात्म की गंगा बहाने का व्रत लो, और विजय का संकल्प लेकर नए युग का निर्माण करो।


      इस इच्छा का विरोध मानवता का विरोध है। दिशा-दिशा में उभरती सूरज की लाली को देख कर हमारा मन भी ऐसे ही 'वेद' की ऋचाओं का संगीत सर्वत्र गूंजते देखना चाहता है।


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