परोपकार करने का ढंग
परोपकार करने का ढंग
पूरे अपने परिवार को करती हूँ समर्पित।
हम सब जीते रहें परस्पर विमल एक दूजे के हित।।
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परोपकार करने का एक सुंदर ढंग बताती हूँ।
जब करती हूँ भोजन तब भूखों पर ध्यान जमाती हूँ।
जब करती हूँ भजन तो अपने सुखके संग सबको ले आती हूँ।
जब पहनती हूँ वस्त्र, तो निर्वस्त्रों हित वस्त्र निकालती हूँ।
जब बोलती हूँ कुछ शब्द तब
गूंगों की आवाज हो जाती हूँ।
जब चलती हूँ पैदल तब
लंगड़ों की वैसाखी स्वयं को पाती हूँ।
और भी बहुत कुछ होने का मन करता है मेरा,
पर मैं स्वयं को उस विमल निर्मल धवल परमेश्वर का वरदान पाती हूँ।
नतमस्तक हो जाती हूँ।
जमीन में गढ़ गढ़ जाती हूँ।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या
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