सन्ध्या सार
१. हे परमानन्द भगवन् ! मैं आप की शरण में आया हूँ। मेरे सब चिंता, भय, शोक,
बंधन, दुःख, आदि दूरकर मुझे आनन्द प्रदान कर दीजिये
२. हे परम प्रभो ! मैं आप के सामने प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपनी वाणी, नाक, आँख,
कान, आदि सभी इन्द्रियों से पवित्र कर्म किया करूँगा, अपवित्र नहीं
३. हे प्राणप्रिय प्रभो ! आप मेरे प्राण = जीवन के आधार हैं। मैं साधक नित्य प्रति
प्राणायाम को करके अपनी इन्द्रियों को वश में रखूगा।
४. हे पापनाशक ओ३म् ।आप वेद शास्त्र, चेतन और जड़ जगत् = सूर्य चन्द्रमादि को तथा
दिन, रात, क्षण, मुहूर्त आदि को रचकर कण-कण में व्यापक मेरे अन्तर्यामी हैं। पाप कर्म
से रोकने के लिये आप मुझे प्रेरित करते ही रहते हैं। मैं आपका भक्त पाप कर्म से दूर रहूँ,
ऐसी मुझे शक्ति प्रदान कीजिये।
५. हे सर्वव्यापक भगवन् ! आप मेरे आगे, पीछे, दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे, अन्दर, बाहर,
विराजमान हैं । वृक्ष, वनस्पति, सूर्य, अन्न तथा विद्वान् आदि सदा मेरी रक्षा करें। मैं किसी
से वैर विरोध न करूँ तथा न ही कोई मुझ से वैर विरोध करे, क्योंकि आप न्यायकारी हैं।
आपकी न्याय व्यवस्था से कोई बच नहीं सकता।
६. हे मेरे अंग संग रहनेवाले परमेश्वर! आप अनादि काल से अनन्त काल तक मेरे रक्षक
एवं मित्र हैंआप अज्ञान अन्धकार से पृथक् करके मुझे मोक्षानन्द प्रदान कर दीजिये।
७. हे मित्र, वरुण, अग्नि, परमेश्वर! आप जड़ जगत् अर्थात् धुलोक, अन्तरिक्ष लोक और
पृथ्वी लोक के प्रकाशक हो और चेतन आत्माओं के जीवन दाता हो।
८. मैं आपका आज्ञाकारी शिष्य हूँ, कृपया मुझ उत्तम कर्म करने वाले को आशीर्वाद प्रदान
करें कि मैं आप की सृष्टि में उत्तम कर्म करता हुआ सौ वर्ष तक देखू, वेद ज्ञान को सुनूँ सुनाऊँ।
इतना ही नहीं सौ वर्षों से भी अधिक काल तक जीऊँ तथा कभी दीन तथा किसी का आधीन न बनें।
१. हे दया के सागर प्रभो! आप मुझ आज्ञाकारी पुत्र को जप, उपासना आदि कर्मों को करते हुए शीघ्र
ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष =३१ नील, १० खरब,४० अरब वर्षका आनन्द प्रदान करें।
१०. ईश्वर कहता है-हेप्यारेजीव! उठ! धर्म, अर्थ, काम औरमोक्ष के लिए पुरुषार्थ कर।मैं तो तुझको
सब कुछ देने को तैयार हूँ। तूं ही मेरी तरफ देखता नहीं और पुस्धार्थ नहीं करता।
११. हे दया के भण्डार करुणामय भगवन् ! मैं आपका कोटिशः धन्यवाद करता हूँ। मेरा नमस्कार
स्वीकार करो, मेरा नमस्कार स्वीकार करो, और भवसागर से बेडा पार करो। ओ३म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥