स्वतन्त्रता और परतन्त्रता की तुलना
स्वतन्त्रता और परतन्त्रता की तुलना
परमात्मा की सृष्टि अनन्त है । प्राणी भी अनन्त हैं। जो प्राणी अनगिनत हैं-जलचर या स्थलचर, नभचर या हिंसक, क्षुद्र जन्तु भूमितल में रहनेवाले, और चरनेवाले पशु भूमि पर रहनेवाले, इनमें से किसी को भी प्रभु पूजन का अधिकार नहीं। एक मनुष्य जाति है जो गिनी जाती हैवही प्रभु पूजन का अधिकार रखती हैऔर इनमें से अनेक ऐसे हैं-जिन्हें अधिकार तो है पर सामर्थ्य नहीं कि पूजा कर सकें, या पूजा का समय निकाल ककें । एवं अनेक ऐसे भी हैं, जिन्हें प्रभु ने अधिकार के साथ सामर्थ्य भी दे रखा है परन्तु उनकी इच्छा ही नहीं होती-कि वे प्रभु नाम ले लें। और हजारों लाखों ऐसे मनुष्य हैं जिनकी सामर्थ्य और इच्छा भी है-पर राजदण्ड के डर से पूजा करने से वञ्चित हैं । यह परतन्त्रता बड़ी दुःखदाई होती है। प्रभु इससे बचाये।
२. वह व्यक्ति स्वतन्त्र है-जिसके हृदय और मस्तिष्क में एकता है । जिसकी वाणी मन के अनुकूल, और जिसके हाथ और पांव वाणी के अधीन होकर चलते हैं- उसे ही सच्ची प्रसन्नता है । उसकी अपनी हकमत और उसे ही सन्तोष का धन मिलता है। वह साहस और पुरुषार्थ कर सकता है, और विद्या-उपार्जन कर सकता है । जिस परिपार में स्त्री पति की माननेवाली है, और पति स्त्री की सुननेवाला है-उसकी सन्तान आज्ञाकारी हो सकती है । उनके घर में स्वर्ग और पुर्वोक्त छः वस्तुएं प्राप्त हैं।