तर्ज-धन्य-धन्य हो तेरी कारीगरी करतार
भजन ३ (तर्ज-धन्य-धन्य हो तेरी कारीगरी करतार )
टेक- होता है जग में शुभ कर्मों से ही मान ।
बुरे काम करने वाले, कहलाते हैं शैतान ॥
कली- कर्महीन मानव जीवन को सुख से नहीं बिताते हैं
जैसे आते हैं दुनियां में, ऐसे ही वे जाते हैं ॥
अपने सुर-दुर्लभ जीवन को बिलकुल व्यर्थ गंवाते हैं।
जब आता है काल हाथ वे मल करके पछताते हैं। - पुनर्जन्म
तोड़- पुनर्जन्म में कुत्ता, बिल्ली बनते हैं नादान ॥१॥
कली- शुभ कर्मों से रामचन्द्र ने जग में आदर पाया था।
दुष्कर्मों से रावण ने अपना परिवार मिटाया था ॥ बाली ने
बाली ने दुष्कर्म किये थे अपना भ्रात सताया था। रामचन्द्र
रामचन्द्र ने एक बाण में बाली मार गिराया था ॥
तोड़- तड़प-तड़प करके त्यागे थे, अन्यायी ने प्राण ॥२॥
कली- दुर्योधन ने दुष्कर्मों के कारण मौत बुलाई थी।
भरी सभा में सती द्रोपदी जिसने नग्न कराई थी ॥
जयचन्द्र ने गौरी को बुलाया, भारी गलती खाई थी।
अपने हाथों से ही अपनी जीवन नाव डुबाई थी ॥
तोड़- अब तक उस को देशद्रोही कहते हैं विद्वान् ॥३॥
कली- सुख चाहो यदि देशवासियो ! शुभ कर्मों से प्यार करो।
तजो बुराई, करो भलाई, अपने उच्च विचार करो ॥
ऋषियों-मुनियों-विद्वानों का श्रद्धा से सत्कार करो।
स्वामी दयानन्द बन जाओ, वेदों का प्रचार करो ॥
तोड़- नन्दलाल निर्भय जागो, कर लो जीवन उत्थान ॥४॥