कैसे बनाए बच्चों को सृजनशील 2

कुछ बालक छात्रावस्था से ही साहित्य में अभिरुचि रखते हैं। उनमें काव्य, कहानी, निबन्ध, नाटक या समीक्षा लेखन की पूर्ण प्रतिभा होती है। कुछ वाद-विवाद या भाषण देने की कला में पटु होते है। ऐसे साहित्य-प्रेमी बालकों को उनकी रुचि और क्षमता के अनुसार साहित्य के किसी एक क्षेत्र का विस्तृत ज्ञान देकर उन्हें स्वस्थ-साहित्य-सृजन के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये, इस प्रकार देश में अनेक कवि, लेखक, समीक्षक एवं तर्कशास्त्री उत्पन्न होंगे जो देश की साहित्यिक प्रगति में योगदान करके इसका गौरव बढ़ायेंगे। कलायें दो प्रकार की होती है- १. ललित कला. २. उपयोगी कला। ललित कला में साहित्य, संगीत, गायन, वादन एवं चित्र कला का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उपयोगी कक्षा में बढ़ईगीरी लुहारगीरी, सुनारगीरी, राजगिरी, चर्मकारी एवं बुनकर का नाम आता है। दोनों प्रकार की कलायें मानवजवन के लिये आवश्यक होती है। ललित कलाओं से आनन्द, यश और धन की प्राप्ति होती है तथा उपयोगीलाओं से जीविका की। देश की बहुमुखी प्रगति के लिये दोनों प्रकार की कलाओं का सृजन आवश्यक होता है। अतः अध्यापकों को चाहिये कि जिस छात्र कीरुचि जिस कला में हो उसे उस विषय का सम्यक् ज्ञान देकर उसकीसृजन क्षमताका विकास करें। अनेक बालक विज्ञान के प्रति आरम्भ से ही जिज्ञासु होते हैं। वे प्रकृति विभिन्न क्रिया-कलापों एवं उसकी शक्तियों का सदुपयोग कर संसार को कोई नया आविष्कार दे जाने की क्षमता रखते हैं। उनमें समस्त पदार्थों, रसायनों और जीवों का सूक्ष्म अध्ययन करना उनके स्वभाव का अंग बन जाता है। ऐसे छात्रों की वैज्ञानिक प्रतिभा का लाभ उठाकर उन्हें उचित निर्देशन द्वारा वैज्ञानिक-सृजन के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। इस प्रकार संसार को अच्छे वैज्ञानिकों और अनेक नये आविष्कारों की प्राप्ति होगी, जिससे मानव-मात्र के कल्याण का पथ प्रशस्त होगा।


बालकों में जोड़-तोड़ की प्रवृत्ति स्वाभाविक रुप से होती है। यह प्रवृत्ति हो तकनीकी सृजन की जन्मदायिनी है। विभिन्न मशीनों के पूजों का उपयोग कर कोई नई मशीन बनाना या पुर्जी का बनाना, बिजली, पेट्रोल, डीजल आदि का उन कार्यों में उपयोग करना जिनमें उनका पहले प्रांग न किया गया हो। यह सब तकनीकी सृजन के अन्तर्गत आते हैं। कल-पुर्जा, वाहनों और संचार साधनों को सफाई या मरम्मत करना, ठोस-द्रव और गैस के प्रयोग से कोई उपयोगी उत्पादन करना भी तकनीकी सूजन कहा जायेगा। कुल बालकों में पढ़ने लिखने की प्रवृत्ति कम, टेक्नोलॉजी की अधिक होती है। उन्हें छपी ओर मोड़ना चाहिएटेक्नोलॉजी विज्ञान का ही एक अंग है। देश की औद्योगिक प्रगति के लिये इस रुचिबा नकों में तकनीकी सृजन की क्षमता का विकास करना कुशल शिक्षक काकाम है। देश की आर्थिक प्रगति केये विभिन्न उद्योग धंधो का विकास आवश्यक होता है। उद्योग-धंधों का विकास तभी संभव होगा, जब बालों में औद्योगिक सजन की क्षमता उत्पन्न की जाए। औद्योगिकसजनमें बडी बडी फैक्टियों के उत्पादन कीजहीं. छोटे-छोटे कुटीर उद्योगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ बालकों में नौकरी या खेती की बजाय उद्योग धंधों की अभिरुचि अधिक पाई जाती है। अध्यापक को चाहिये कि ऐसे बालकों के स्वभाव का सूक्ष्म टेिसे अध्ययन करेंकि वह किस उद्योग में अभिरुचि रखता है जिसमें उसकी रुचि हो उसी उद्योग के विधि आयामों का ज्ञान देकर उसे औद्योगिक सृजन में दक्ष करना चाहिये। पिछले दिनों हरयाणा सोनीपत डी. वी. पब्लिक स्कूल के कक्षा १२वीं में पढ़ने वाले छात्र विकास गुप्ता ने १८ किताबें लिखकर एक कीर्तिमान कायम किया है । इस प्रकार हम चाहते है कि हमारे देश फिर से विश्व गुरु बनकर संसार का मार्गदर्शन करेंगे हम हमारी पीढ़ी को देश की आवश्यकता अनुरुप प्रशिक्षित करना होगा, तभी विश्व मानचित्र पर एक सशक्त समृद खुशहाल राष्ट्र बना पाएंगे, अन्यथा कोई मार्ग नहीं। 


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