कर्म का चिन्तन

कर्म का चिन्तन


0 कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल प्राप्त करने में नहीं। फल की इच्छा छोड़कर निरन्तर कर्त्तव्य कर्म करो। जो फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करते हैं, उन्हें अवश्य मोक्ष-पद प्राप्त होता है। - गीता


0 हमारे दायें हाथ में कर्म है, बायें हाथ में जय। - अथर्ववेद


कर्म वह आइना है, जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अतएव हमें कर्म का अहसानमन्द होना चाहिए। - विनोवा भावेअतीत में जैसा भी कुछ कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है। - महावीर स्वामी


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