ओ३म् येभ्यो माता मधुमत्पिन्वते पय: पीयूषं द्यौरदितिरद्रिबर्हा.....
ओ३म्
ओ३म् येभ्यो माता मधुमत्पिन्वते पय: पीयूषं द्यौरदितिरद्रिबर्हा:। उक्थशुष्मान् वृषभरान्त्स्वप्नसस्ताँ आदित्याँ अनुमदा स्वस्तये।( ऋग्वेद १०|६३|३)
अर्थ :- जिन विद्वानों के लिए प्रकाशवाली मेध सदृश दानशीलता, अखण्ड वेद विद्या वा पृथ्वी माता अति मधुर अमृत और दुग्धादि को देतीं हैं, वे अत्यंत बल वाले श्रेष्ठों का पोषण करने हारे, सुकर्मी अखण्ड व्रत वाले आदित्य ब्रह्मचारी हमारा मंगल करने वाले हो ।