उपासना ईश्वर के पास बैठकर

       उपासना ईश्वर के पास बैठकर उसके सत्यस्वरूप का चिंतन करने और उसकी स्तुति व उससे प्रार्थना करने को कहते हैं. संसार में ईश्वर एक है. उसी ने हमें व सब मत-मतांतर के मनुष्यों को जन्म दिया और वही सबका पालन करता है. उसकी उपासना पद्धतियों में विरोध नहीं अपितु परस्पर एकता व समानता होनी चाहिये. विचार करने पर उपासना की ऋषि दयानन्द निर्दिष्ट एवम् प्रवर्तित संध्या वा ध्यान की पद्धति ही सर्वोत्तम व ठीक निश्चित होती है. इससे सर्वाधिक लाभ होता है. इससे स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना के सभी लाभ प्राप्त होते हैं. इससे जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष भी प्राप्त किया जा सकता है. अनेक मत-मतांतर तो मोक्ष व इसके सत्यस्वरूप को जानते भी नहीं हैं. सादर.


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