वीर हकीकत राय: बलिदान की अनूठी गाथा पर विशेष
वीर हकीकत राय: बलिदान की अनूठी गाथा पर विशेष
बलिदान दिवस (10 फरवरी) बसंत पंचमी पर विशेष
यह कहानी सुनकर किसका हृदय द्रवित नहीं होता। शायद ही कोई एसा हो जिसकी आँखें नमन इसके बाद जेहन में यह सवाल न उभरे कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक 14 वर्ष के बच्चे हकीकत समूचा मजहब डर गया था। वीर हकीकत राय तो सैकड़ों वर्ष पहले बसतपचमा कादन अपनधर्म पर बलिटा गयालाकन बलिदान होने से पहले इस नन्हे बालक ने अपनी निडरता का जो उदाहरण पशाकया उसे दलित में लिए हमेशा गर्व से खड़ा रहेगा।
वीर हकीकत राय का जन्म 1720 में सियालकोट (अब पाकिस्तान मे) लालाबागमलपुरी के यहाँ इनकी माता का नाम कोरा था। लाला बागमल सियालकोट के तबसे प्रसिद्धसम्पन्न हिन्दूव्यापारीथे।वीर हकीकत राय उनकी इकलौती सन्तान थी। उस समय देश में बाल विवाह प्रथा प्रचलित थी, क्योंकि हिन्दुओं को भय रस था कि कहीं मुसलमान उनकी बेटियों को उठा कर न ले जाये। जैसे आज भी पाकिस्तान और बांग्लोदश से समाचार आते रहते हैं। इसी कारण से वीर हकीकत राय का विवाह बटाला के निवासी कृष्ण सिंह की बेटी लक्ष्मी देवी से बाड वर्ष की आय में कर दिया गया।
उस समय देश में मुगल शासन था। जिन्होंने देश के सभी राजनैतिक और प्रशासनिक कार्यों के लिये फारसी भाषा लागू कर रखी थी। देश में सभी काम फारसी में होते थे। इस कारण हिन्दुओं को भी न चाहते हए मदरसों में फारसी भाषा सीखनी पडती था। हकीकत राय को भी फारसी भाषा के ज्ञान के लिये मोलवी के पास उसके मदरसे में पढ़ने के लिये भेजा गया। कहते हैं कि वह पढ़ाई में अपने अन्य सहपाठियों से अधिक तेज था. जिसके चलते मुसलमान बालक हकीकत राय से ईर्ष्या करने लगेथे।
एक बार हकीकत राय का अपने मुसलमान सहपाठियों के साथ झगड़ा हो गया। मुसलमान बच्चों ने हिन्दुओं के महापुरुषों-देवी-देवताओं को लेकर अपशब्द कहे जिसका हकीकत ने विरोध करते हुए कहा, "क्या यह आपको अच्छा लगेगा यदि यही शब्द मैं आपकी बीबी फातिमा के सम्बंध में कहुँ ? इसलिये आपको भी अन्य के प्रति ऐसे शब्द नहीं कहने चाहिये।" ।
बस इतनी सी बात थी इस पर मुस्लिम बच्चों ने शोर मचा दिया की इसने बीबी फातिमा को गालियां निकाल कर इस्लाम और मोहम्द का अपमान किया है। जैसा कि अभी हाल ही पाकिस्तान में आसिया बीबी के साथ भी हुआ हैं। वैसे ही उन्होंने हकीकत को मारना पीटना शुरु कर दिया। मदरसे के मौलवी ने भी मुस्लिम बच्चों काही पक्ष लिया। शीघ्र ही यह बात सारे स्यालकोट में फैल गई। लोगों ने हकीकत को पकड़ कर मारत-पीटते स्थानीय हाकिम आदिल बेग के समक्ष पेश किया। वह समझ गया कि यह बच्चों का झगड़ा है, मगर मुस्लिम लोग उसे मृत्युदण्डकी मांग करने लगे।
हकीकत राय के माता-पिता ने भी दया की याचना की। तब आदिल बेग ने कहा मैं मजबूरहूँ, परन्तु यदिही हकीकत इस्लाम कबूल कर लें तो उसकी जान बख्श दी जायेगी। किन्तु 14 वर्ष के बालक हकीकत राय ने धर्म परिवर्तन से इंकार कर दिया।
मुस्लिम हाकिमों को मोटी रिश्वत देकर हकीकत के पिता ने मामला स्यालकोट से लाहौर भिजवा दिया। किन्तु यहाँ भी वही शर्त रखी गयी जो सिखों के पांचवे गुरु श्रीगुरु अर्जुनदेव और नौवें गुरु श्री गुरु तेगबहादूर जी को भी इस्लाम स्वीकार करें या जान देने की शर्त रखी गयी थी। हकीकत राय को मुसलमान बन जाने के लिये तरह तरह से समझाया, डराया व प्रलोभन भी दिया। माँ ने अपने, दूध का भी वास्ता दिया। मगर हकीकत ने कहा माँ! यह तुम क्या कर रही हो। तुम्हारी दी शिक्षाने ही तो मुझेये सब सहन करने की शक्ति दी है। मैं कैसे तेरी दी शिक्षाओका अपमान करूं। आपने ही सिखाया था कि धर्म से बढ़कर इस संसार में कुछ भी नहीं है। आत्मा अमर है तो फिर मैं मौत से क्यों डरूं? हकीकत राय अपने धर्म से टस-से-मस नहीं हुआ, उसने पूछा क्या यदि मैं मुसलमान बन जाऊं तो मझे मौत नहीं आएगी? क्या मुसलमानों को मौत नहीं आती? तो उलेमाओं ने कहा मौत तो सभी को आती है। तब हकीकत राय ने कहा तो फिर मैं अपना वह धर्म क्यों छोडूं जो सभी को ईश्वर की सन्तान मानता है। __हकीकत ने प्रश्न किया आखिर में क्यों इस्लाम स्वीकार करुं जो मेरे मुसलमान सहपाठियों के मेरी माता भगवती को कहे अपशब्दों को सही ठहराता है, मगर मेरे न कहने पर भी उन्हीं शब्दों के लिये मुझसे जीवित रहने का भी अधिकार छीन लेता है। जो दूसरे धर्म के लोगों को गालियां निकलना, उन्हें लूटना, उन्हें मारना और उन्हें पगपग पर अपमानित करनाखुदा का हुक्म मानता हो मैं ऐसे धर्म को दूर से हीसलाम करता हूं। वसंत पंचमी के उत्सव पर मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के काल में एक नन्हें बालक वीर हकीकत राय को जब वधशाला की ओर ले जाया जा रहा था तो पूरा नगर अश्रुपूरित आंखों से उसे देख रहा था। कहते हैं हजारों लोग "अल्लाहू-अकबर, अल्लाहू-बल्लाहू' चिल्लाते हुये उस बालक पर पत्थर बरसा रहे थे, उसक सारा शरीर पत्थरों की चोट से लहूलुहान हो गया और वह बेहोश हो गया। अब पास खड़े जल्लाद को उस बालक पर दया आ गयी कि कब तक यह बालक→ पत्थर खाता रहेगा। इतना सोच कर उसने अपनी तलवार से हकीकत राय का सिर काट दिया। रक्त कीधरायें बह निकलीं और वीर हकीकतराय बसंत पंचमी के दिन अपने धर्म पर बलिदान हो गया। एक माँ की कोख अमर हो गयी। ऐसे महान सपूत वीर हकीकत राय को उनके बलिदान दिवस पर आर्य समाज का शत-शत नमन।