अपना दिपक खुद बनो
मैं भी मंदिर बहुत गया हूँ।
मंदिर में रखी मूर्ति के भोग भी बहुत लगाये हैं।
भगवान के चरणों में रूपये भी बहुत रखे हैं।
परंतु कभी किसी भगवान को मैंने भक्त के लिए मंदिर के बंद दरवाजें खोलते हुए नहीं देखा।
कभी किसी भगवान को मेरे द्वारा चढ़ाये गये भोग को सेवन करते नहीं देखा।
कभी किसी भगवान को पानी पीते नहीं देखा।
कभी किसी भगवान को नहाते नहीं देखा।
कभी किसी भगवान को कपड़ें लेकर पहनते नहीं देखा।
कभी किसी भगवान को टॉयलेट जाते नहीं देखा।
कभी किसी भगवान को उसके हाथ से पैसे पकड़ते नहीं देखा।
कभी किसी भगवान ने आशीर्वाद देने के लिए मेरे सिर पर हाथ नहीं रखा।
कभी किसी भगवान ने मुझे गले नहीं लगाया।
कभी किसी भगवान को मैंने मुझे दु:ख-दर्द, परेशानी में मुझे संभालते नहीं देखा।
क्या देखा
भगवान के नाम पर भोग खाते पुजारी को देखा।
भगवान के नाम पर पैसे लेते पुजारी को देखा।
भगवान के नाम पर कपड़ें लेते और पहनते पुजारी को देखा।
भगवान के मंदिर में से पैसे उठाते पुजारी को देखा।
भगवान के मंदिर में चढाये पैसों से मालामाल होते पुजारी को देखा।
मैं बेवकूफ मंदिर गया भगवान को मानने और मान बैठा इंसान को।
आस्था का सैलाब तो देखों कि जब पुजारी को भगवान को लूटते देखा तो खुश हुआ,
परंतु भगवान के चढ़ावें को खुद उठाने से डरता था कि भगवान पर चढ़ाया हुआ लेना पाप है। भगवान नाराज होकर श्राप दे देगा।
क्या मानसिकता थी कि भगवान के नाम का तो पुजारी ही ले सकता हैं, मैं ले लूँ तो चोर, लुटेरा, अधर्मी कहलाउंगा।
वाह रे इंसान, तू भगवान की मूर्ति के चक्कर में एक नालायक, चोर, लुटेरे इंसान को भगवान मान बैठा।
इंसान को भगवान मानने की गलती करने के लिये मुझे क्षमा करें ।
ढोंग ,पाखण्ड , आडम्बर , भाग्य और भगवान , अन्धविश्वास भगाओ अभियान
दिमाग की बत्ती जलाओ