एक आर्य बहू की सीख 


एक आर्य बहू की सीख 


गुलामी की परम्पराएँ                                                                                                       


एक आर्य बहू पौराणिक महाशय के घर ब्याहकर गई तो पौराणिक महाशय के यहाँ प्रथा के अनुसार नई बहू को बेटे के साथ सास अन्य स्त्रियों सहित गाते-बजाते लेकर देवी के मंदिर पहुंची।
देवी का मंदिर विचित्र बना हुआ था। मंदिर के आगे पत्थर की दो बिल्लियों की तस्वीरें अत्यंत ही खूबसूरत बनी हुई थी। उससे कुछ दूर पर पत्थर के दो कुत्तों की तस्वीरें उनसे भी अनोखी बनी हुई थी और ऐसा जान पड़ता था कि मानो कुत्ते अभी काटने को दौड़ उठते है। उससे कुछ पीछे पत्थर के दो शेरों की तस्वीरें सबसे निराली और बड़ी ही मनोहर बनी हुई थी। शेर पूंछ ऊपर को उठाए हुए इस भांति खड़े थे, मानों टूटकर आदमियों को अभी भक्षण किए लेते है।
उस मंदिर के बाहर बिल्लियों की तसवीरों के पास ज्यों ही यह आर्य बहू पहुंची, तो अपने पति का दुपट्टा, जिसमें कि इसकी गांठ जुड़ी थी, पकड़कर खड़ी हो गई और भयभीत हो रोकर अपनी सास से बोली – “हूँ, हूँ अम्मा, बिल्लियाँ खा जाएंगी।” यह सुन सास ने उत्तर दिया – “बहू तू कैसा लड़कपन करती है, पत्थर की बिल्लियाँ कही काटती है?” वह चुप हो कुछ आगे बढ़ी, त्योंही उसे दो कुत्तों की तस्वीरें नजर आई। बस वह फिर गांठ जुड़े दुपट्टे को पकड़कर खड़ी हो गई और पहले से भी विशेष डरकर सास से बोली – “अरी अम्मा, कुत्ते फाड़ खाएँगे।” सास ने कहा- “बहू, क्या तू पगली है; भला कही पत्थर के कुत्ते भी काटते है?” यह सुन चुपकी हो बहू कुछ आगे को बढ़ी कि कुछ ही दूर पर उसे दो शेरों की तस्वीरें दिखाई पड़ी, अत: बहू पुन: अपने पति की गांठ वाला दुपट्टा पकड़कर खड़ी हो डरकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और अपनी सास से कहा – “अम्मा, ये शेर मुझे खा जाएंगे।” इस पर सास ने बहू को डाँटा और कहा – “तू बड़ी पागल है। मैं दो बार कह चुकी कि पत्थर की तस्वीरें हैं ये काट नहीं सकती और न ये शेर खा सकते है।”
सास बहू में यह झंझट होते-चलते बहू जब मन्दिर के भीतर देवियों के पास पहुंची, तो उसकी सास ने देवियों की पुजा कर अपने बेटे और बहू से कहा – “इन देवियों के पैरों में गिरो, यही तुम्हें बेटा देंगी। यह सुन आर्य बहू से न रहा गया और वह अपनी सास से बोली – “माँ, जब पत्थर के कुत्ते ने कुत्ते बनकर नहीं काटा और न पत्थर के शेरों ने शेर ही बनकर खाया, तो यह पत्थर की देवी मुझे कैसे बेटा देंगी, जो हम इनके पैरो में गिरे?” सास यह बात सुनकर निरुत्तर हो गयी।


एक आर्य बहू की सीख
शिक्षा :- बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह युक्तिपूर्वक प्रत्येक बात को समझाए। परिवारों में फैले अंन्धविश्वासों, अज्ञानों, रूढ़िवादियों को दूर करें। मूर्तिपूजा भी एक ऐसा अन्धविश्वास है जिसने भारतीयों की बुद्धि को जड़ बना दिया।


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