लावणी छंद
हे विंध्यवासिनी वसुधा पर ,
आर्य पुत्र महिमा गाये।
उत्तर दिशि में ध्रुव तारा भी,
स्वयं देव के मन भाये।
रहे सनातन भावों वासी,
भरत वंश के गुणगानी।
सज्जनता को हृदय विराजें,
राम रचेता की बानी।
नियम धर्म का करते पालन,
नीति नियम यापन होता।
श्रेष्ठ विज्ञ विद्वान प्राण ही,
आर्य वंशजों का श्रोता।
सत स्वभाव हो परोपकारी,
सत विद्या हो गुणशीला।
आर्यावर्त देश के प्राणी,
दयानंद ऋषि की लीला।
शुद्ध भाव का परिचायक हो,
ब्रह्म ज्ञान बहती धारा।
योग ध्यान की संस्कृति ने तो,
विश्व धरा को है तारा।
आर्य कहो या हिंदू बोलो,
वंशज हम हैं मनु चारी।
वेद शास्त्र की करके रचना,
देवलोक भी अवतारी।
आर्य भावना तजती संतति,
आर्याव्रत तजती जाने।
हिंदुस्तानी भाषाओं में,
पाली संस्कृत बिसराने।
करो कृपा माँ सप्तसिंधु पर,
नव नूतन हैं शाखायें।
शतरूपा अरु स्वयंभुवा मनु,
राग अनुरागी ऋचायें।