मूर्ति पूजा अन्धविश्वास

 


🌷मूर्ति पूजा अन्धविश्वास                


🌷प्रश्न:-जब ईश्वर सब जगह है,तो मूर्ति में भी है,फिर क्यों न मूर्ति को पूजा जाए?पूजा करने वाले पत्थर को नहीं पूजते उसमें व्यापक परमात्मा को ही पूजते हैं।


उत्तर:-यह सत्य है कि ईश्वर सर्वत्र होने के कारण मूर्ति में भी व्यापक है।परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि सब जगह होने से सब जगहों में और सब चीजों में उसकी पूजा हो सकती है।देखो ! पूजा करने वाला 'जीवात्मा' है।इसका उद्देश्य यह है कि ईश्वर से मेल हो जाये।मेल वहाँ होता है,जहाँ मिलने वाले दोनों मौजूद हों।


मूर्ति में ईश्वर तो है पर वहाँ जीवात्मा तो है ही नहीं,जिसे ईश्वर से मिलना है।फिर मिलाप हो तो कैसे?
हाँ,हर मनुष्य के अपने ह्रदय में जीवात्मा और परमात्मा दोनों ही उपस्थित है।उपासक के अन्तःकरण में दोनों का मेल अवश्य हो सकता है।अतएव जिस मनुष्य को ईश्वर से मिलना है उसे अपने ह्रदय में ही (मन और इन्द्रियों को वश में करके) ईश्वर की पूजा करनी चाहिए।


देखो!ईश्वर सब जगह व्यापक है,यह जानकर भी क्या सब स्थानों का जल पीने योग्य होता है?परमात्मा का वास शेर और साँप दोनों में है,मैं पूछता हूं क्या शेर और साँप के पास जाना उचित होता है?इसलिए यह कहना कि परमात्मा मूर्ति में व्यापक है,इसलिए मूर्ति की पूजा करनी चाहिए,कोरी अज्ञानता और भोलेपन की बात है।परमात्मा मिश्री में है और विष में भी है,तो क्या विष को खाना चाहिए?हरगिज नहीं।खानी तो वही चीज चाहिए जो खाने योग्य है।


मूर्ति पूजन करने वाले समझते तो यही हैं कि हम मूर्ति में व्यापक परमात्मा की पूजा कर रहे हैं,परन्तु वास्तव में मूर्ति द्वारा व्यापक भगवान की पूजा होती नहीं।तुम कहोगे क्यों?इसलिए कि जिन पदार्थों को मूर्ति पर चढ़ाया जाता है उनमें भी परमात्मा व्यापक है।
जैसे आकाश घड़े में भी व्यापक है और ईंट में भी।अब यदि कोई मनुष्य यह चाहे कि घड़े में जो आकाश व्यापक है उषके ईंट मार दूं तो यह उसकी सर्वथा भूल होगी।क्योंकि व्यापक होने के कारण आकाश को ईंट लग नहीं सकती,यदि ईंट उठाकर मारेगा भी तो घड़ा ही टूटेगा,आकाश नहीं।क्योंकि आकाश तो उस ईंट में भी है।इस प्रकार जो भी पुष्प,पत्र,मेवा,मिष्ठान्न मूर्ति में व्यापक परमात्मा पर चढ़ाया जाता है,वह मूर्ति पर ही चढ़ाना है,भगवान पर नहीं।क्योंकि भगवान् तो उन पदार्थों में भी व्यापक है।


प्रश्न:-मूर्ति पर फल,पुष्प आदि न चढ़ाये जाएँ परन्तु उसको श्रद्धापूर्वक देखने से व्यापक परमात्मा और उसकी महिमा का ज्ञान अवश्य हो जाता है।


उत्तर:-यह भी बिल्कुल उल्टी बात है।जरा सोचो तो सही कि मूर्ति को देखने से व्यापक परमात्मा और उसकी महिमा का ज्ञान कैसे हो जाता है?


देखो! तिलों में तेल व्यापक है,परन्तु देखने वाले को क्या दिखाई देगा,तिल या तेल?
तिल ही तो दिखाई देगें।चाहे वह कितना ही श्रद्धा व ध्यान से उसे देखे।तेल कब दिखाई देगा,जब उन तिलों को तोड़ दिया जाए,कोल्हू में पेल दिया जाए।
इसी प्रकार मूर्ति में भगवान् व्यापक है,परन्तु देखने वाले को मूर्ति ही दिखाई देगी भगवान् नहीं।भगवान् तो तभी दिखाई देगा जब जड़ मूर्ति से नाता तोड़ दिया जाए और अपने आत्मा में उसकी खोज की जाए।


रही ईश्वर महिमा के ज्ञान होने की बात,सो मनुष्य की बनाई मूर्ति में भगवान् की महिमा क्यों दिखाई देगी?उसमें तो मनुष्य की ही महिमा दिखाई देगी कि उसने किस अक्लमन्दी से उसे बनाया है।
हाँ,परमात्मा की बनाई हुई चीजों में परमात्मा की महानता अवश्य दिखाई देगी।तुम्हें परमात्मा की महानता देखनी है,तो सारी सृष्टि का विचारपूर्वक अध्ययन करो,फिर देखो ईश्वर की बनाई हुई छोटी से छोटी चीज में कितनी महानता प्रकट होती है,इन मनुष्यकृत जड़ मूर्तियों में परमात्मा की महानता का कौन सा चिन्ह है,जो प्रकट होगा?


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

वर-वधू को आशीर्वाद (गीत)