ऋषि जीवन

गुजरात के टंकारा ग्राम में शिवरात्रि के दिन                                                                 
बालक मूलशंकर भगवान शिव के दर्शन की जिज्ञासा को लेकर, व्रत उपवास को धारण कर शिव मंदिर में रात्रि जागरण करते हुए आंख और अंतःकरण से जागते रहे 


देर रात तक मंदिर में शिव दर्शन की अभिलाषा के लिए आये हुए अन्य सभी भक्त जन तो सो गए लेकिन बालक मूलशंकर नींद आने पर भी आंखों पर जल के छींटे मार मार कर भगवान शिव के दर्शन के अवसर को ढूंढता रहा 


आंखे तो शिव दर्शन को लालायित थीं लेकिन अचानक उसे भगवान शिव की मूर्ति पर रखे हुए भोग प्रसाद को खाते, उटपटांग करते हुए चूहों के दर्शन हो गए 
बालक मूलशंकर को इसी दृश्य ने झकझोर कर रख दिया


उस बालक ने सोचा कि पिताजी कहते हैं कि समस्त संसार का कल्याण और रक्षा करने वाले भगवान शिव है तो इन तुच्छ चूहों से वह जब अपनी रक्षा नहीं कर सकते तो इस ब्रह्मांड की रक्षा और कल्याण कैसे करते होंगे ?
हो न हो यह सच्चे भगवान शिव नहीं हो सकते, शायद वह शिव तो और कोई ही है ! मुझे तो उस सच्चे शिव के ही दर्शन करने हैं, जो प्राणी मात्र का कल्याण करता है, जिससे मैं वार्तालाप कर सकूं, जो मेरे भेंट फल, मिठाई, प्रसाद को स्वीकार कर खा सके, जो दूध आदि पेय पदार्थों को पी कर व्यर्थ न जाने दे, जो प्रत्यक्ष रूप में मुझे दर्शन देकर मेरा उद्धार कर सके


इसी विचित्र घटना औऱ अदभुत सोच ने, सच्चे शिव के दर्शन करने की प्यास ने, ब्राह्मण बालक मूलशंकर को बचपन में ही घर छोड़ने को विवश कर दिया इसी जिज्ञासा को लेकर वह घर छोड़कर सच्चे शिव की खोज में निकल पडा


अनेक पंडो पुजारियो, मंदिरों में भटकते भटकते उस बालक ने कैलाश पर्वत तक की यात्रा कर दी और आगे चलकर वह सच्चे सर्वरक्षक, निराकार परमेश्वर जिसका एक नाम "शिव" भी है उस सर्वव्यापी का अपने अंतःकरण के मन मंदिर में अनुभव दर्शन कर महर्षि दयानंद सरस्वती के नाम से जग प्रसिद्ध हुए


आज शिवरात्रि के पावन पर्व पर देश के करोड़ों लोग भगवान शिव के दर्शन करने दूध के लोटे भर भर कर, फल, मिठाई, प्रसाद लेकर मंदिरों में पहुंचेंगे, हो सकता है वह समस्त भेंट पंडेपुजारी और चूहे खा जाएं, नालियों के भेंट चढ़ जाए


भगवान शिव तो सभी को खिलाने वाले हैं, वह तो स्वयं इस को खाएंगे नहीँ ! भले देश के करोड़ों बच्चे भूखे रह जाएं ! वास्तव में न तो भोग का सदुपयोग होगा और न ही वास्तविक शिव के दर्शन होंगे !क्योंकि बालक मूलशंकर के दिव्य आंखों और विचारों से उस सच्चे सर्वरक्षक, सर्वव्यापी, अंतर्यामी, कल्याणकारी शिव के दर्शन करने और ढूंढने की जिज्ञासा तो शायद किन्हीं विरले भक्तों में ही मिलेगी 


- वेदो की ओर वापस आओ 


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