वर्तमान जीवन के बारे में

वर्तमान जीवन के बारे में


       बुरे काम का बुरा नतीजा। क्यों भाई चाचा, अरे हां भतीजा। इस तरह का एक गीत भी कभी आपने शायद सुना होगा। तो मोटे तौर पर तो सभी जानते हैं, कि बुरे काम का बुरा परिणाम होता है। परंतु वे गहराई से इस बात पर विचार नहीं करते। उसकी परवाह नहीं करते। क्या सोचते हैं? कि, अब तो बुरे काम कर लो, उसका लाभ  ले लो। कल किसने देखा है? बुरा नतीजा क्या होगा, कुछ नहीं होगा। जो होगा, देखी जाएगी अभी तो मजा कर लो। यह सोच है आजकल के अधिकांश लोगों की। 


      और इसी सोच का दुष्परिणाम है कि बुरे काम बढ़ते जाते हैं। दंड की व्यवस्था लगभग फेल है। अपराधी को दंड मिलता नहीं। वह अधिकारियों के साथ तालमेल बनाकर दंड से बच जाता है। अर्थात उसे दंड मिलता नहीं ठीक से, जिसके कारण वह आगे फिर अपराध करता है। परिणाम! संसार में अन्याय और दुख बढ़ता जाता है।


       परंतु वर्तमान में कर्मों का फल सांसारिक व्यवस्था में ठीक से नहीं मिल रहा, यह देख कर आप ऐसा ना सोचें,  कि भविष्य में ईश्वरीय व्यवस्था में भी दंड ठीक से नहीं मिलेगा। 


     जो लोग ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था को जानना समझना चाहते हैं, वे कुत्ता गाय घोड़ा हाथी बंदर शेर बिच्छू सांप भेड़िया मछली वृक्ष वनस्पति आदि इन प्राणियों को बड़े ध्यान से देखें। और विचार करें कि ये सब प्राणी किसने तथा क्यों बनाए? अगर आप अपने मन को शुद्ध करके ईमानदारी से सोचेंगे। तो आपको समझ में आ जाएगा कि ईश्वर ने उन अपराधियों को ही पशु पक्षी बनाया है, जिन्होंने पिछले जन्मों में खूब बड़े-बड़े अपराध किए, और सरकारी दंड से बच गए। रिश्वत आदि देकर दंड से छूट गए। इसलिए इन प्राणियों को ध्यान से देखें, तो आपको समझ में आ जाएगा कि यदि इस जन्म में दंड नहीं मिला, तो अगले जन्म में ईश्वर नहीं छोड़ेगा। सांप बिच्छू कुत्ता वृक्ष आदि अवश्य ही बनाएगा।


     तथा वर्तमान जीवन में भी जो बेचारा रिश्वत देने वाला व्यक्ति रिश्वत दे रहा है, वह भी मजबूरी में उसको रिश्वत दे रहा है। वह कोई खुश होकर नहीं दे रहा। बहुत दुखी मन से वह रिश्वत देता है। उस रिश्वत में सिर्फ पैसे या नोट ही नहीं होते, बल्कि उसकी बद्दुआएँ चिंताएं दुख नाराजगी और रिश्वत लेने वाले के विनाश की प्रार्थनाएं तक, ये सब भी उन पैसों के साथ लिपटे हुए होते हैं। इसलिए रिश्वत लेने वालो ! सावधान। आपका भविष्य खतरे में है। समय आने पर आपको इसका दंड अवश्य ही भोगना पड़ेगा। चाहे सरकार दे, या ईश्वर।


- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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