आजादी का महानायक कौन

आजादी का महानायक कौन


कम्युनिस्टों के बारे मे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के विचार-


1- 5 जनवरी 1928 को कलकत्ता में अखिल भारतीय युवक सम्मेलन में उन्होंने कहा- मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो जो आधुनिकता के जोश में अतीत के गौरव को भूल जाते हैं। हमें भूतकाल को अपना आधार बनाना है। भारत की संस्कृति को सुनिश्चित धाराओं में विकसित करते जाना है। विश्व को देने के लिए हमारे पास दर्शन, साहित्य, कला आदि बहुत कुछ है। हमें नए और पुराने का मेल करना है।


      उनका कहना था कि व्यक्ति केवल रोटी खाकर ही जीवित नहीं रहता, उसके लिए नैतिक और आध्यात्मिक खुराक की भी आवश्यकता होती है।कम्युनिज्म किसी भी ढंग से राष्ट्रवाद के बारे में सहानुभूति नहीं रखता और न ही यह भारतीय आंदोलन को एक राष्ट्रीय आंदोलन मानता है।


2- साम्यवाद तथा फासिज्म के बारे में सुभाष बाबू का कहना था- दोनों में समानताएं है, दोनों व्यक्ति पर राज्य की प्रभुता को मानते है। दोनों ही पार्लियामेंटरी प्रजातंत्र को नकारते है। दोनों पार्टी शासन को, पार्टी के अधिनायकवाद को मानते है तथा समस्त असहमत अल्पसंख्यकों के दमन के पक्ष में है। (शिशिर कुमार घोष, नेताजी सलेक्टेड वक्र्स, भाग-2 पृष्ठ 352)


3- ''इसके प्रमाण के रूप में मैं यह कह सकता हूं कि साम्यवाद की विश्वव्यापी तथा मानवीय अपील के बाद भी साम्यवाद भारत में कोई स्थान नहीं बना पाया है, मुख्यत: क्योंकि उनके द्वारा अपनाए गए तरीके एवं युक्तियां ऐसे हैं, जो दुश्मन बनाते हैं, न कि मित्रों तथा सहयोगियों को जीतते हैं।'' (5 अप्रैल, 1931 अखिल भारतीय नवयुवक भारत सभा कराची में भाषण से)



नेता जी के बारे मे कम्युनिस्टों की मान्यताएँ। 


           नेताजी सुभाषचंद्र बोस को 'तोजो का कुत्ता' बताते थे वामपंथी...
        1940 में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तिका 'बेनकाब दल व राजनीति' में नेताजी को 'अंधा मसीहा' कहा गया। फिर उनके कामों को कहा गया, 'सिद्धांतहीन अवसरवाद, जिसकी मिसाल मिलनी कठिन है। यह सब तो नरम मूल्यांकन था। धीरे-धीरे नेताजी के प्रति कम्युनिस्ट शब्दावली हिंसक और गाली-गलौज से भरती गई। जैसे, 'काला गिरोह', 'गद्दार बोस', 'दुश्मन के जरखरीद एजेंट', 'तोजो (जापानी तानाशाह) और हिटलर के अगुआ दस्ते', 'राजनीतिक कीड़े', 'सड़ा हुआ अंग जिसे काटकर फेंकना है',आदि। ये सब विशेषण सुभाष बोस और उनकी सेना आई़ एऩ ए़ (इंडियन नेशनल आर्मी) के लिए थे। तब कम्युनिस्ट मुखपत्रों, पत्रिकाओं में नेताजी के कई कार्टून छपे थे, जिससे कम्युनिस्टों की घोर अंधविश्वासी मानसिकता की झलक मिलती है (उन पर सधी नजर रखने वाले इतिहासकार स्व़ सीताराम गोयल के सौजन्य से वे कार्टून उपलब्ध हैं)। अधिकांश कार्टूनों में सुभाष बाबू को 'जापानी, जर्मन फासिस्टों का कुत्ते या बिल्ली' जैसा दिखाया गया है, जिससे उसका मालिक जैसे चाहे खेलता है।


       एक कार्टून में बोस को तोजो का मुखौटा, तो अन्य में भारतवासियों पर जापानी बम गिराने वाला दिखाया गया है। एक में बोस को 'गांधीजी की बकरी छीनने वाला' दिखाया गया। एक कार्टून में तोजो एक गधे के गले में रस्सी डाले सवारी कर रहा है, उस गधे का मुंह बोस जैसा बना था। दूसरे में बोस को 'तोजो का पालतू क्षुद्र बौना' दिखाया, आदि। कम्युनिस्ट अखबार पीपुल्स डेली (10 जनवरी 1943) में तब कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च नेता रणदिवे ने अपने लेख में बोस को 'जापानी साम्राज्यवाद का गुंडा' तथा उनकी सेना को 'भारतीय भूमि पर लूट, डाका, विध्वंस मचाने वाला भड़ैत' बताया। लेकिन रोचक बात यह है कि यह सब कहने के बाद, समय बदलते ही, जब आई़ एऩ ए. की लोकप्रियता देशभर में बढ़ने लगी, तो कम्युनिस्टों ने उसके बंदी सिपाहियों के पक्ष में लफ्फाजी शुरू कर दी। 


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